"माँ अपने मुझे बोलना कैसे सिखाया", १0 (दस) साल के माधव का सवाल सुन कर माँ हस्स पड़ी। माँ को हस्ता देख माधव का कौतूहल और बढ़ गया। "बोलो न माँ, मुझे बोलना कैसे सिखाया"। माँ हस्ते होए बोली, "अरे बड़ो को बोलते-सुनते हुए देख कर खुद सीख गए"। माँ का जवाब उस उम्र में ठोस नहीं लगा था। मन ही मन सोच रहा था, "फिर गणित क्यों नहीं खुद-बा-खुद समझ आती"। और नहीं तो क्या, माँ बाबा की गणित बहुत अच्छी थी पर मेरे दिमाग में तो ढेला नहीं घुसता था। खेर वक़्त के साथ ये सवाल भी सालो के तरह हवा में बेह गया। अब दुनिया-दरी की चक्की चला रहे थे, वही रोज़ का काम, दफ्तर, घरवालो और मेरे यश। यश मेरा प्यारा भतीजा है। बचपन से वह मेरा लाडला है, उसे लोग अपने पापा के नाम से कम मेरे नाम से ज्यादा जानते है। उसकी घर में इधर-उधर चेहेल चलती रहती है बच्चा तो है, वो नहीं करेगा तो कौन करेगा। यश हमेशा मेरे साथ रहता है। जब भी मैं घर पर रहता, यश मेरे साथ ही होता। मेरे साथ ही उठता-बैठता, खता-पीता, खेलता-कूदता, हम दोनो तो एक दूसरे के साये जैसे थे। भाभी हमेशा कहती रहती, "देवर जी यश आपसे सब सीख रहा है"। पर कौन इन बातो पर गौर करता है।
ये प्राइवेट नौकरी, उफ्फ काम में ही सारा दिन निकल जाता है। और-तो-और मालिक खुद को भगवान से कम नहीं समझता। सारा हफ्ता एड़ी घिसने में निकल जाती है और रविवार कपडे धोने और प्रेस करने में। भईया का बॉस तो बहुत ही चांडाल है, इतना काम करता है। भईया काफी तनाव में रहते है, ऑफिस के काम से ज्यादातर शहर से बहार ही रहते है और भाभी घर सम्हालती है। इसी कारण भईया-भाभी में काफी कहा-सुन्नी भी होने लगी है। पर फिर दोनों सब बना भी लेते है। खेर मैं तो यश के लिए खुश था, अब स्कूल जो जाने लगा है। बड़ी बड़ी बाते भी करने लगा है, एक दिन कहता है "चाचा जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तो पापा को ऑफिस नहीं जाने दूंगा उन्हें सब सुख घर में ला दूँगा"। इतनी प्यारी बाते मनमोह लेती है, मेरे लिए तो खिलौना है यश, सब टेंशन-तनाव भूल जाता हूँ उसके आगे। अरे प्राइवेट नौकरी मेरी भी है तनाव मुझे भी है। लेकिन मैं तो बढ़िया घूमने निकल जाता हो जब मन होता है और देर रात में वापस आता हू, भइया-भाभी गुस्सा करते है तो उल्टा जवाब दे देता हूँ जब ज्यादा हो जाता है। अरे क्या करू सहनशक्ति जो साथ छोड़ देती है।
नजाने क्यों आज कल यश ठीक से बात नहीं करता। बड़ा उत्खाडा-उत्खाडा रहता है। भाभी से भी बत्तमीजि करता है पर मैं समझा देता हूँ उनको "अरे बच्चा है गलती कर देता है जाने दो न भाभी"। पर अब यश कुछ ज्यादा ही बत्तमीजि और जिद्द करने लगा है, किसी को कुछ भी बोलता है। समझ नहीं आ रहा है यश को होआ क्या है। फिर एक दिन चाची जी घर आयी, भाभी ने पूरी समस्या उन्हें बताई। चाची जी जोर से ठहाका मार कर हांसी, "बिल्कुल अपने बाप पर गया है। बहुँ सुन्न ये न उसका शरीर कद छोड़ रहा न है इसलिए बच्चा चिरड-चिढ़ाता है, कुछ दिन की बात है फिर सब ठीक हो जाएगा। इसका बाप भी ऐसा ही था"। चाची जी की बात सुन्न कर भाभी को सुकून आया। महीनो हो गए अब यश की जिद्द और बत्तमीजि हद्द से ज्यादा बड गयी है हमने फैसला लिया की उसके स्कूल जाकर टीचर से बात करेंगे। हो सकता है गलत संगत में हो बच्चा हमारा। हमने टीचर से बात की, उन्होंने उसकी सीट बदल दी और बदमाश बच्चो से दूर कर दिया। टीचर ने प्यार से यश को समझाया भी और मानो पल भर में सब ठीक हो गया।
आज समाचार में देखा की किसी देश से अमेरिका की सेना ने कुछ छोटे-छोटे बच्चो को पकड़ा है। इन बच्चो को मानव बॉम्ब के तौर पर ईस्तमाल करना था। इन छोटे-छोटे बच्चो को तो ये भी नहीं पता था की वो क्या करने वाले थे। मन में ख्याल आया की कैसे सीखाते है ये सब बच्चो को, फिर यश का ख्याल आया। यश अब ६ (छे) साल का हो गया है और साइकिल चलाना सीख गया है। वो इधर उधर साइकिल से घूमता रहता है अक्सर। अब तो पूरी बच्चा पार्टी भी है उसके साथ।आज शाम मैं जब ८ (आठ) बजे घर पहुंचा तो मौहाल बड़ा चिंताजनक था, मुझे समझ ही नहीं आया की क्या होआ। मैंने भाभी से पूछा "क्या होआ भाभी"। बस मेरे सावल पूछने की ही देर थी और भाभी का बान्ध फट पड़ा। "माधव यश शाम को साइकिल चलने गया था अभी तक घर नहीं आया", ये बोल कर भाभी फुट-फुट कर रोने लगी। हमारे शहर में इस वक़्त बच्चो का अपहरण करने वाले गैंग सक्रिय थे। यश को खोजने में सब लग गए। रात ९ (नौ) बजे यश एक पडोसी को मिला और वह उससे घर ले आया। जैसे तैसे घर में सब की सासो में सास आयी। अब यश का साइकिल चलना भी बंद करवा दिया था और उसे घर के पास खेलने को समझा दिया था। यश प्यार से हर बात मान है।
हमारे देश में सड़क पहले बनती है और फिर ये फ़ोन कंपनी वालो को याद आया है की तार डालना तो भूल ही गए। और फिर अच्छी खासी नई सड़क को खोद कर बर्बाद कर देते है। साथ ही साथ बोनस में पानी की पाइप-लाइन भी तोड़ कर चले जाते है। हमारी कॉलोनी में ऐसा २ (दो) बार हो चूका था। जब सुबह लोगो के घरो में पानी नहीं आया तब इस बात का पता चला। इस बार हम सब ने तैय कर लिया था की ऐसा होआ तो इठः से इठः बजा देंगे। क्या-क्या करेंगे यही हम कॉलोनी वाले आपास में बात कर रहे थे, यश भी साथ था। बड़ी गरमा-गर्मी वाली चर्चा थी, सब आक्रोश से भरे हुए थे। अचानक अगली सुबह यश दौड़ते होए मेरे पास आया, उसके एक हाथ में डंडा और दूसरे हाथ में चाक़ू था। वह चिलाते होए बोला "चाचा वह लोग आ गए, चलो हाथ-पाओ तोड़ देंगे, चाक़ू मार देंगे"। ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए, ये बच्चा क्या बोल रहा है इसे पता भी है। मैंने बाहर जा कर देखा तो फ़ोन कंपनी वाले सड़क खोदेने आये थे। सारा मामला समझ आ गया मुझे और मन आत्मगिलानी से भर गया। ये उसे मैंने अनजाने में सिखाया था, वह मासूम तो जनता भी नहीं की अगर किसी को चाकू मार दिया तो क्या होगा। ये सब जो भी यश कर रहा था वो उसे हम सब ही तो अनजाने में सिखा रहे थे। वो बत्तमीजि-उत्खाडापन भइया-भाभी के बीच की कहा-सुन्नी और झगाड़े थे। वो जिद्द भइया और मेरा तनाव था, और वो रात में उसका साइकिल से दूर घूमना मेरी मनमौजी थी। यश ने कुछ नहीं किया था हमने उसे सिखाया था। अब मुझे उन बच्चो की भी मानुइस्थिति समझ आयी जिनके बारे में न्यूज़ में सुन्ना था। इसलिए बड़े बोलते है की बच्चो के सामने अच्छे से बर्ताव करे, अच्छा बोले।
एक पाल में सब समझ आ गया, ये तो बचपन की अनजान सीख है। जो बच्चे देखते सुनते है घर में वही तो वह बनते है। हमें यश की टीचर से नहीं खुद से बात करनी थी। मुझे, भईया और भाभी को यश के आसपास एक अच्छा मौहाल बनना था, ना की उसे उसके दोस्तों से दूर करना था। मुझे यश के सामने एक अच्छा उद्धरण बनना चाहिए था, ना की उसकी साइकिल की सैर बंद करनी चाहिए थी।आज माँ का वो जवाब जो १0 ( दस) साल के माधव को ठोस नहीं लगा था, बिलकुल इस्पष्ट हो गया था। अनजाने में हम अपने घर के बच्चे को कभी कभी गलत बाते और बर्ताव सिखा देते है और दोष उन पर या स्कूल वालो पर दाल देते है। मेरा तो पता नहीं पर आज यश ने मुझे जरूर कुछ अच्छा सीखा दिया था।
Awesome !! Very well written and it's true. Children are like mirror what they saw they will reflect the same..
ReplyDeleteThanks you so much. And yes it's true.
ReplyDeleteVery nicely written / expressed.
ReplyDeleteI was not knowing about this art of yours.
Thank you for the comments. It's a great source of inspiration.
DeleteShandaar...
ReplyDeleteThank you dear. It's lovely to hear from you.
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