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सफर और मंजिल |
"Knowledge is Power as Long as it is Shared". Here I'am to share the maximum I can with everyone, right from my experiences, interests, fictions, professional skills, to facts I have explored with time. Will be sharing Income Tax, Company Law, Goods & Service Tax (GST) and Commercial Tax blogs. Learn techniques to do Smart work & stand out of the crowd. Mesmerise your mind & soul with lovely stories. The goal is to inculcate the urge of learning & growth.
Sunday, July 28, 2024
सफर और मंजिल
Saturday, January 14, 2023
डॉक्टर डायन
Disclaimer :
This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events or any other literary material, called by any other name, is purely coincidental. The story is purely for entertainment purpose and the author has no intention to hurt the sentiments & emotions of any individual or public at large.
Monday, November 2, 2020
सकारात्मक सोच और विद्यार्थी जीवन पर आसार एवम महत्व
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।"
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Friday, July 3, 2020
नमक के मजदुर और उनकी मजबूरी - कच्छ का रण
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राजू भाई : हम लोग वहाँ के क्षेत्र में पाए जाने वाले पशु और पक्षीयो पर अध्यन करेंगे। वह के नमक के मजदूरों के विकास कार्यो की रणनीति पर भी विचार विमर्श और उसकी रूप रेखा निर्धारित करेंगे।
चेतना बेन : केतन तुम्हारी कच्छ के रण क्षेत्र की रिसर्च (अन्वेषण) कैसी चल रही। मुझे उम्मीद है तुम अपना डाक्यूमेंट्री प्रोजेक्ट वही पर बनाओगे।
केतन : सच में माँ मुझे पता नहीं था वहाँ पर इतना सब देखने को है। आईएम रियली एक्ससिटेड नाउ (मैं अब वास्तव में उत्साहित हूँ )। मैं वहाँ की बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी (जैविक-विविधता) देखना चाहता हूँ। मैं जानना चाहता हूँ की वहाँ के अगरिया समुदाय के नमक के मजदूरों या किसान कैसे रहते है इतनी परेशानियों के बिच और इतने कम पैसे में।
चेतना बेन : तुम्हे जानना चाहिए, जरूर जानना चाहिए [मायूसीभरे स्वर में वह ये बोलते हुए चली जाती है ]।
२० (२०) नवम्बर, आखिर वो दिन आ गया। हम ध्रांगधरा जो लगभग ४५ (45) किमी की दुरी पर "इंडियन वाइल्ड अस्स वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी" पहुँच गए है। यहाँ का तापमान लगभग ३०-३५ (30-35) डिग्री है जो की अम्म तौर के तापमान से कम है। हमने पास में ही एक होटल लिया, वह से गाड़ी से कच्छ के रण के लिए निकले। एक बड़े ही प्यारे से मड-हाउस (मिट्टी का घर) में हमने अपने आने वाले एक महीने का बसेरा बसाया जो सैंक्चुअरी से कुछ किमी दुरी पर है। सैंक्चुअरी का क्षेत्रफल ४९५४ (4954) वर्ग किमी है और यहाँ आते ही पापा और मम्मी अपने कामो में लग गए। माँ-पापा ने अपना प्लान (योजना) तो घर पर ही बना लिया था और आते ही उसमे लग गए। हम सैंक्चुअरी के क्षेत्र में घूमते हुए जानवरो और पक्षियों को देखते और साथ में माँ-पापा अपना अध्यन से जुड़े काम करते रहते है। पर न जाने वह इस बार कुछ अलग ही खोज रहे है समझ ही नहीं आ रहा, जैसे किसी अपने की तलाश में है। मैं कोई मनोविज्ञानी नहीं, पर उनकी बेचैनी साफ़ देख और समझ सकता हूँ, शायद वह मुझे बताना नहीं चाहते।
रण का इकोसिस्टम (पारिस्थितिकी तंत्र) बड़ा उन्नत है। माँ-पापा हर २-३ दिन में यहाँ के अगरिया समुदाय के नमक के मजदूरों से मिलते है जिनके विकास के लिए वह कई सालो से काम कर रहे है। उनके स्वयं सहायता समूह के कामो का जाएजा लेना, उनको जागरूक करना, महिलाओ को काम सिखावना, स्वस्थ सम्बन्धी सेवाएं दिलवाना और उनको कैसे सहयता राशि मुहैया कराए, आदि विषियो पर बात-चित जैसे काम में माँ-पापा लगे रहते। इन नमक के मजदूरों और किसानो की हालत बड़ी दयनीय है। माँ-पापा के सामाजिक कार्य देख मुझे बहुत सौभाग्यशाली और गर्वान्गिता महसूस होता है की मैं उनका बेटा हूँ। इसी बिच हम अस्स-पास के इलाक़े में भी घूमने जाते रहते है। ये अगरिया समुदाय के नमक के मजदूर और किसान हमें अपने घर भी बुलाते रहते है और हम जाते भी है। कई लोग माँ-पापा को बड़े अच्छे से जानते है। पर अक्सर माँ-पापा मुझसे चुप उनसे बात करते और एक नाम की खोज में लगे रहते है, "शारदा बेन खखाड़िया"।
इस रण की संस्कृति भी बड़े लुभावानि और विविद है। हम जब रण उत्सव में गए तो मैं तो हैरान ही रह गया। मैं तो समझ ही नहीं पा रहा हूँ की इस डाक्यूमेंट्री मे क्या-क्या डालू, यहाँ का लोक गीत-संगीत और नित्य जैसे गजियो या रंगीन विषभूषा या लोक कला। और खाने की तो बात मत पूछो, कढ़ी-रोटला, चक्रदा पकवान और पता नहीं क्या-क्या। मुझे हर एक जाते पल के साथ इस मीठी से प्रेम होता जा रहा है। लेकिन न जाने इस वयस्तत में भी माँ-पापा किसे खोजने में लगे है।
सैंक्चुअरी और रण के क्षेत्र में हमने कितने पशु, पक्षी और वनस्पति देखे, मुझे तो सब के नाम भी याद नहीं हुए।
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ये वही नमक के खेत है जहाँ पर अगरिया समुदाय के नमक के मजदूरों या किसान ५० (50) डिग्री की कड़ी धुप में ८ (8) महीने कड़ी मेहनत करते है नमक बनने के लिए। इस नमक की खेती में इनका पूरा शरीर और उम्र गाल जाती है, एक औसतन नमक के मजदूरों या किसान की उम्र केवल ५०-५५ (50-55) वर्ष ही होती है। इनके पुरे शरीर पर नमक का घातक आसार होता है, ये वक़्त के साथ उम्र से पहले अंधे होने लगते है , इनके पुरे शरीर की त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है। इनको कई बीमारिया भी हो जाती है, खास तौर पर त्वचा सम्बन्धी। यहाँ तक की इनके हाथ और पैर नमक के खेतो में काम करते-करते सार्ड जाते है। इस पेशे से जुड़ी हुई सबसे भयावल सच्चाई इनके अंतिम संस्कार के वक़्त दिखती है। इनके पैर देह-संस्कार के वक़्त नहीं जलते क्यों की वह सर्ड कर सख्त हो जाते है, एक पत्थर के सामान। नमक के मजदूरों
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[शाम का वक़्त है और सब साथ में बैठे है]
चेतना बेन : "शारदा बेन" मिली क्या ? [धीमी आवाज में बोली]
राजू भाई : नहीं, पर हम खोज रहे है।
केतन : ये "शारदा बेन खखाड़िया" मेरी दुल्हन है क्या ? हहहह [ठहाके लगते हुए]
चेतना बेन : तुम्हे जल्दी पता चल जाएगा। [गंभीर स्वर में]
केतन : माँ इन नमक के मजदूरों या किसानो के बच्चे कैसे रहते है ?
चेतना बेन : बेटा....... बीमार, कुपोषित और शिक्षा-विहीन।
केतन : आप इन बच्चो के लिए कुछ नहीं करते ?
राजू भाई : हम इन बच्चो को स्वास्थ सुविधा , शिक्षा प्रायोजन और अडॉप्शन (दत्तक ग्रहण/गोद लेना) की सुविधा दिलवाते है। ताकि इन्हे एक अच्छा भविष्य मिल सके।
चेतना बेन : आगे तुम्हे ही ये सब सम्हालना है चेतन।
राजू भाई : ये तुम्हारी तो जमीन है [वाणी को विश्राम देते हुए ]
चेतना बेन : इनके माँ-बाप अपने बच्चो को हर हाल में इस हर-पल मरती जिंदगी से निकलना चाहते है। वह इसके लिए अपने जिगर के टुकड़े को किसी और को भी देने को तैयार हो जाते है। [ये बोलते -बोलते वो रोने लगी]
माँ को इतना भावुक मैंने बहुत कम देखा है। पापा ने उन्हें जैसे-तैसे शांत किया। शायद उन्हें मेरा ख्याल आ गया, मैं भी उनकी गोद ली हुई सन्तान हूँ। रात के वक़्त हम सब खाना खा कर बैठे थे इतने में कोई पापा से मिलने आया। पापा के माँ से बोला ........
राजू भाई : "शारदा बेन खखाड़िया" मिल गई। उनकी तब्बीयत बहुत ख़राब है, शायद अब वह कुछ दिन की मेहमान है। [गंभीर स्वर में]
चेतना बेन : हम कल ही उनके पास जाऐंगे। अब ये बोझ मुझसे और नहीं झेला जाता। [धीमी आवाज में बोली]
केतन : कौन है ये "शारदा बेन खखाड़िया", कौन लगती है वह हमारी और क्यों ये इतनी खास है।
[विराने में एक सन्नाटा छः गया ]
केतन : बोलो न माँ।
चेतना बेन : वह तुम्हारी माँ है। बेटा हमने तुम्हे उनसे गोद लिया था पर वह नहीं चाहती थी की तुम्हारे मन में कोई हीन भवाना आये या तुम हमे कभी भी पराया समझो इसलिए उन्होंने हमसे वचन लिया था की तुम्हे ये बताया जाए, की तुम्हारे माँ-पापा एक्सीडेंट में मर गए। [रोते हुए बोली ]
राजू भाई : वह चाहती थी की तुम्हे इस बात का कभी पता न चले, पर हम तुम्हे एक बार उनसे मिलवाना चाहते थे। पर बेटा उन्हें पता न लगने देना की तुम्हे सब पता है , उनकी तपस्या ख़राब मत करना।
ये सब सुनने के बाद मैं निःशब्द खड़ा हूँ , समझ ही नहीं आ रहा क्या बोलू। उस माँ की मज़बूरी को समझू या इस माँ का प्यार। मैं अपने अनजान कल और आज के बिच खड़ा हूँ। मैंने माँ को गले से लगा लिया और चुप कराया। सारी रात छत की ओर देखता रहा। मन में इतने सवाल, इतनी बेचैनी है। क्या ये नमक एक मजदूर को इतना मजबूर कर देता है।
सुबह होते ही हम गाड़ी से निकले, पुरे रस्ते किसी ने कोई बात नहीं की। इतनी चुप्पी की हवा की आवाज भी शोर लग रही है। जैसे ही वहाँ पहुंचे तो हमें एक झोपड़ी दिखी, एक आदमी वहाँ हमारा इंतजार कर रहा था। अंदर जा कर देख तो एक औरत खटिया पर लेटी हुई है। माँ उन्हें देखते ही पहचान गयी। उनकी तब्बियत काफी खराब है। आँखो से साफ़ दिखाई नहीं देता उनको, हाथ और पैर सर्ड गए है।
चेतना बेन : कैसी हो शारदा बेन।
उनने हाथ हिला कर इशारा किया की ठीक हूँ। माँ-पापा उनकी खटिया के सामने खड़े हो गए और मुझे उनके पैर छूने को बोला। उनके पैरो को हाथ लगाया तो समझ आया की कैसे बेजान पत्थर सामान हो गए है नमक से। मैं उनके पास बैठ गया।
चेतना बेन : शारदा बेन अपने बेटे "केतन" को तुमसे मिलवाने लाई हूँ, उसे आशीर्वाद नहीं दोगी। तुम्हारे पास बैठा है।
ये सुनते ही उनके चेहरे पर एक मुस्कान छा गयी और आँखो में आँसू आ गए। उनने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया। उनके हाथ का रूखापन और कपन मैं महसूस कर सकता हूँ। वह बेचारी मुझे देखना चाह रही है पर इन आधी अंधी आँखों से उन्हें कुछ साफ़ नज़र नहीं आ रहा। मैं थोड़ा उनके तरफ झुका तो उन्होंने अपना हाँथ मेरे सिर पर रख, मुझे आशीर्वाद दिया। शायद जितनी शरीर में जान है उसका पूरा जोर लगा कर बोली, "जीते रहो"। मुझे देख तो पा नहीं रही है इसलिए अपने हाथो से मेरे चेहरे और फिर कंधे से होते हुए मेरे हाथों को टटोलने लगी। मानू मेरी आकृति अपने मान की आँखों से देख रही हो। हम सब चुप-चाप उन्हें देख रहे है। इस क्षण में एक अलग ही आत्मीयता और संतोष है। कुछ देर बाद वह आदमी जो झोपडी के बाहर हमारा इंतज़ार कर रहा था हम लोगो से बोला, "अब आप लोग आराम से जाइये इतनी देर इस गर्मी में रहना आपके लिए ठीक नहीं"। उनने (शारदा बेन) मेरे हाथ को टटोलते हुए मुझे जाने का इशारा किया। मैं उठा और बाहर जाने लगा। फिर अचानक ही मेरे मन में कुछ आया और मैं पलट कर बोला.........
केतन : माँ जी अपना ध्यान रखिएगा।
ये सुनते ही वह फिर मुस्कुराई, जैसे परम सुख मिल गया हो और हाँथ मेरे ओर हिलाया। वह मुस्कुराता चेहरा अपने मन में बासा कर मैं वहाँ से निकला। इस सफर ने मुझे एक नया इंसान बना दिया है और इन नमक के मजदुर और उनकी मजबूरी का हाल देखा दिया है।
Disclaimer :
This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events or any other literary material, called by any other name, is purely coincidental. The story is purely for entertainment purpose and the author has no intention to hurt the sentiments & emotions of any individual or public at large.
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सफर और मंजिल
सफर और मंजिल ये मेरी पहली सोलो ट्रिप (अकेल सफर) होने वाली है। इतनी मुश्किल से इस सफर के लिए सब प्लान (प्रबन्ध) किया है और निकलने को उत्सुक ...
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