Sunday, July 28, 2024

सफर और मंजिल

सफर और मंजिल
ये मेरी पहली सोलो ट्रिप (अकेल सफर) होने वाली है। इतनी मुश्किल से इस सफर के लिए सब प्लान (प्रबन्ध) किया  है और निकलने को उत्सुक हूँ। सब से बड़ी बात, किसी को पता नहीं की मैं सफर पर निकली हूँ। थोड़ा तो कुछ नया और एक्ससिटिंग (रोमांचक) होना चाहिए लाइफ (जीवन) में। प्लान (योजना) तो बहुत सिम्पल (आसान) है, हर जगह की ट्रैन की टिकट और होटल की बुकिंग एडवांस (पहले से) करवाँ ली है। क्यों की मैं जोब (नौकरी) के कारण अकेली रहती हूँ, तो मुझे निकलने में कोई दिक्कत नहीं होगी। प्लान (योजना) तो काफी पहले बना लिया था, पर किसी को बताया नहीं ताकि कोई रोक-टोक न लागा दे। आज भी हिन्दुतान में अकेले लड़की का बाहर जाना, वह भी लम्बे सफर पर कोई ज्यादा सही नहीं समझता। खैर, एक हफ्ते की बात है, मैं घूम कर लौट आऊंगी। सामान सब बाँध लिया है, और बस सुबह का इतंजार है। दिल्ली से केरला का सफर थोड़ा लम्बा तो है, पर मेरे लिए बिलकुल सही है। हर चीज पर ध्यान दिया है मैंने, ट्रेन का रास्ता, समय, सुरक्षा और मंज़िल। मुझे ट्रेन से सफर करना बचपन से पसंद है, मेरा बस चले तो हमेशा ट्रैन में रहूँ। एक अलग ही जुड़ाव है मेरा ट्रेन के सफर से, बस दिल ,मंत्रमुद्ध हो उठता है । 

तो आज रविवार है और सुबह से मन में हलचल है, चार बार सब चेक (जजच) कर चुकी हूँ, की कुछ छुटा तो नहीं। भाई, चालीस-इकतालीस घंटो का सफर है, तीन हज़ार किलो-मीटर दूर मुझे कोल्लम पहुंचना है, और फिर बीचस (समुद्र तट), मंदिर, वाटर बोट रेस सब देखना है। शाम चार बजे दिल्ली हज़रत निजामुद्दीन स्टेशन के लिए निकल रही हूँ, और सच बताओ एक अलग ही उत्साह और घबराहट का मिला-जुला भाव है अंतर-मन में। मैं, इरा हूँ और ये मेरा पहला सोलो ट्रिप (अकेल सफर) है। 

टैक्सी में स्टेशन जाते हुए  :
इरा : भईया सारा सामान रख दिया है न ?
टैक्सी चालक : हाँ मैडम। 
इरा : भईया जल्दी करो स्टेशन पहुंचना है। 
टैक्सी चालक : अरे, आप निशचिंत रहो। 

राजधानी एक्सप्रेस को देख कर तो मन ही प्रफुल्लित हो उठा। ऐसा लग रहा है, "जैसे जंगल में मोर ने पहले सावन की फुहार देख ली हो और अब बस नाचने के लिए पँख फैला रहा है"। मैं तो बस ट्रैन में बैठ कर ये सोचने में लग गयी की कैसे-कैसे घूमना है और कहा-कहा जाना है। पहले  तो दिल्ली हज़रत निजामुद्दीन स्टेशन से ट्रैन से कोल्लम पहुंचना है और फिर घूम कर कोच्ची जाना है। कोल्लम में दो तीन रुकना है और फिर कोच्ची के लिए निकलना है. लगभग तीन घन्टे का रास्ता है कोल्लम और कोच्ची के बीच। कोच्ची में दो दिन रुक कर फिर वापसी करनी है। 

कितनी जगहे देखनी है। खैर, ट्रैन में बैठी तो मज़े की बात ये हुई की मेरे सामने वाली सीट पर भी एक लड़की ही है "रामा" नाम की। कुछ देर में हमारी बाते शुरू हो गई, क्यों की सफर लम्बा है। 

(इरा रामा से बात करते हुए )
इरा : तो आप भी कोल्लम जा रहे। 
रामा : हाँ। 
इरा : आप भी अकेले हो क्या। 
रामा : अभी तो हूँ, पर कोल्लम में मेरे दोस्त आ रहे है। 
          आप अकेले हो क्या। 
इरा : हाँ, मैं तो सोलो ट्रिप (अकेल सफर) पर निकली हूँ। 
रामा : पर आप चाहो तो हमारे साथ चलो। 
इरा : हमारा होटल भी पास है। 
रमा : हाँ , मेरा भी पास ही है। 
इरा : चलिए अभी तो साथ ही सफर करते है। कोल्लम पहूँच कर देखते है। 
रामा : हम लोग ठेवले महल, अमृतपुरी मंदिर, जटायु केंद्रे, महात्मा गाँधी बीच, अष्टमुडी तालाब .... 
इरा : अरे बस-बस, मैं इतनी जगह नहीं जा रही। मैं आराम आराम से घुमूंगी। 
रामा : वो भी अच्छा है। 
इरा : मुझे फिर कोच्चि भी जाना है।  
        बोट क्रूज, मट्टनचेर्री महल, हिल पैलेस म्यूजियम और फिर हाउस बोट में रहूंगी..... 
रामा : बाप..... रे, लिस्ट (सूची) तो तुम्हारी भी लम्बी है। 

हमारी बात लम्बी चली। 
रात को मैं अपनी किताब पढ़ रही हूँ और घर वालो को टेक्स्ट (संदेश) लिख रही हूँ। घर पर अभी भी किसी को नहीं पता की मैं कहा हूँ। और मैं ये सोच कर ही एक्साइट (रोमांचित) हो रही हूँ। घर जाकर सब को इस ट्रिप की बाते और कहानिया सुनाऊँगी। मम्मी तो मुझे पहले डाटेंगी, फिर मुझे उन्हें मनाना होगा। पापा तो बस बोलेंगे, बेटा ऐसा नहीं करते कुछ हो जाता तो। खैर सब अच्छा होगा। 

अब नींद आ रही है।  सोने से पहले बाथरूम (शौचालय) चली जाती हूँ। रामा से भी पुँछ लेती हूँ। साथ ही चल लेंगे दोनों। 
दोनों साथ में बाथरूम (शौचालय) जाती है, बस इरा रामा का बाथरूम के बाहर इंतजार कर रही है की इतने में एक टनल आ जाती है और हर जगह अँधेरा हो जाता है

"ये कहाँ हूँ मैं", इरा ने मन में सोचा। वह एक अलग ही जगह है अब। 

इरा का सिर भी बहुत भारी है। इरा को होश आता है तो वह खुद को एक खली कमरे में पाती है। उसके हाँथ पाँव बँधे हुए है। और उसे बाहर से दो आदमीयो की लड़ने की आवाज आ रही है। 

लखन : राजन, ये वो लड़की नहीं है। 
राजन : लखन ,अरे मुझे वही लगी। 
लखन : एक काम ठीक से नहीं होता तुम लोगो से। 
राजन : अब क्या करे। 
लखन : अब इसी लड़की से काम बनाते है। 

इरा समझ जाती है की जब ट्रैन टनल से घुसी तो उसे पीछे से आ कर किसी ने कुछ सुंघा दिया होगा और वह बेहोश हो गयी। शायद ये लोग रामा का किडनैप (अपहरण) करना चाहते थे पर हम दोनों की कद-काठी इतनी एक सी थी की मुझे रामा समझ कर ले आये। इरा को किसी के आने की आहट मिलती है और वह वापस बेहोश होने का नाटक करने लगती है। 

लखन : इसे अभी तक होश नहीं आया। 
राजन : मर तो नहीं गयी। 
लखन : कितनी दवा डाली थी। हे राम, अब क्या ये लड़की भी हाँथ से गयी। 
राजन : (इरा की नाक के आगे हाथ हिलाते हुए) साँसे चल रही है। कुछ देर में होश आ जाएगा। 
लखन : पता करो कौन है ये, इसका बाप कौन है, कहाँ से है ?

तीन घंटे बाद लखन इरा के ऊपर पानी डाल देता है। अब इरा डर कर उठ जाती है। 

लखन : कौन हो तुम ?
इरा : इरा अय्यर (डरते हुए) 
लखन : कहाँ से हो तुम ?
इरा : दिल्ली।
लखन : क्या करती हो और घर वाले क्या करते है ?
इरा : मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ती हूँ और पापा की किराना की दुकान है। 
लखन : अपने बाप का नंबर दो। 
इरा : भईया मुझे जाने दो। मिडिल क्लास घर से हो। 
लखन : नंबर देती हो या लगाओ एक। 
राजन : लखन ,पुलिस इस लड़की हो खोज रही है। वो जिस लड़की को उठाना था न उसने पुलिस बुला दी इसके लिये।  
लखन : यहाँ से निकलते है अभी। रात है, आसानी से निकल जाएँगे। 
राजन : उठाओ इसे और गाड़ी में डालो। 
लखन : उठ लड़की और चुपचाप चल, नहीं तो हालत ख़राब कर दूंगा। 

इरा के पास कोई रास्ता नहीं है। वह चुप चाप लखन की बात मान कर चल देती है। इरा इतना समझ गयी है की अभी बस इन लोगो की बात मान लेना ही उसके लिए सही है। 

लखन उसे गाड़ी की पीछे वाली सीट पर बैठा देता है। गाड़ी चलने लगती है।  यहाँ इरा अपने घरवालों की बात याद कर के ऑफ्सोस कर रही है और सोचती है ;

काश मैंने घर पर बताया होता की मैं कहा जा रही हूँ। 
काश मैं अकेली ना आयी होती।
काश मैंने आखिरी बार सब से बात कर ली होती। 
काश उन्हें बताया होता मैं उनसे कितना प्यार करती हूँ। 
काश थोड़ा और वक़्त गुज़र लेती उन सब के साथ। 
अगर घर न लौटी तो माँ-बाबा का क्या होगा। 
ये मेरे साथ ही क्यों हो रहा है, मैंने तो कभी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा। 

पर अभी भी कोशिश करुँगी मैं, इन लोगो के चंगुल से निकलने की। 
उम्मीद नहीं हरने वाली मैं। 
पर दिमाग से काम लेना होगा और भगवान सब साथ देंगे। 

इरा के हाँथ पाओ बढ़े है और मुँह पर टेप लगा है। गाड़ी किसी हाईवे पर अचानक रुक्क़ जाती है। इरा शांति से देखने लगी। 

लखन : गाड़ी रुक्क़ क्यों गयी, जारा देखना राजन। 
राजन : देखता हूँ। 
            कुछ खराबी आ गयी है पास में मैकेनिक देखना होगा। 
लखन : अब ये क्या मुसीबत है। देख लड़की चुप चाप रहना नहीं तो जान से हाँथ धो बैठेगी। 
इरा : सर हिला कर हाँ बोलती है। 
राजन : भईया, इसे गाड़ी में किसी ने देख लिया तो दिक्कत हो जाएगी। क्यों न इसे रोड के बदल के जगल बाँध कर चले। 
लखन : बात सही है। इसे किसी पेड़ से बाँध देते है थोड़ा दूर। किसी को रात में दिखाई भी नहीं देगी। 

लखन और राजन इरा को रोड के बगल के जंगल में एक पेड़ से बाँध देते है। दोनों गाड़ी में लॉक (टाला) लगा कर पास में मैकेनिक देखने निकलते है। इरा उनके कुछ दूर जाने का इंतज़ार करती है और भगवन से प्रार्थना करती है की उसे बचाले और यहाँ से निकले। अब इरा अपनी रस्सी खोलने की कोशिश में लग जाती है। बड़ी मुश्किल से उसकी रस्सी ढीली पड़ गयी और वह किसी तरह निकल पाई। बस फिर क्या इरा जंगल में भागना शुरू कर देती है। रास्ता तो पता नहीं  है  इसलिए इरा रोड के पास ही रह कर किसी पास की बस्ती में पहुंचने की कोशिश करती है। इधर राजन और लखन वापस आ गए है। उन ने देखा इरा वहाँ नहीं है तो वह उसे खोजने लगे। 

इधर इरा ज्यादा दूर नहीं निकल पाई है। उसे जंगल में किसी के भागने और बोलने की आवाज आ रही है। वह समझ गयी की लखन और राजन उसे खोजने में लगे है। वो पास की एक बस्ती में पहुँच गयी पर अब उसे लखन और राजन की साफ़ आवाज आ रही है।  रात का वक़्त है, गालियां खाली थी बस आवारा कुत्ते घूम रहे है। इरा सोच रही है की कही कोई कुत्ता उस से देख कर भोकने न लगे, नहीं तो लखन और राजन को उसका पता चल जाएगा। आवारा कुत्तो की उहार उसे और डरा रही है। उससे ऐसा लग रहा है जैसे कोई उसका शिकार करने उसके पीछे लगा है । पर वो किस्से मदद माँगती, ऊपर से अगर किसी का दरवाजा खटखटाती है तो क्या पता लोग दरवाजा खोलते है भी या नहीं। 

इरा ने भगवन को याद किया। अचानक ही इरा के पैर पर कुछ लगा। उसने देखा की किसी के दुकान की अंडरग्राउंड (भूमिगत) पानी की टंकी खुली रह गयी थी। रोशिनी ज्यादा है नहीं यहाँ पर। इरा को पानी का इस्त्र और टंकी की गहराई भी समझ नहीं आ रही है। उधर लखन और राजन की आवाज भी और पास आने लगी है। एक तरफ कुआ है और दूसरी तरफ खाई। अब बस वक़्त नहीं है, ये सोचते ही इरा पानी की टंकी में उतर जाती है। ऊपर वाले ने फिर साथ दिया और पानी केवल इरा के घुटनो तक है। इरा अब बस उम्मीद कर रही है की किसी तरह सुबह हो जाए और सुबह की किरण के साथ उसकी जिंदगी की ये काली रात ख़तम हो। वह बस पानी की टंकी के ढक्कन के छेद को ताक रही है इस उम्मीद में की दिन का उजाला देखेगी। उम्मीद कर रही है की वह अपने घर फिर जा पाएगी, अपनों से मिल पाएगी और उनको बता पाएगी की कितने अहम है वह सब उसके लिए। उसे लखन की गुस्सैल आवाज साफ़ आ रही है;

"खोजो उसे नहीं तो दोनों को कुछ नहीं मिलेगा, सुबह होने से पहले" 

वह बार-बार सोच रही है की कैसे दो लोगो की किस्मत एक ही वक़्त में एक जगह पर होने से बदल गयी। जहाँ रामा को होना चाहिए था वहाँ कैसे वह आ गयी और जहाँ उसे होना चाहिए था वहां कैसे रामा पहुँच गयी। एक इंसान कैसे सही होते हुए भी गलत परिस्थितियों में फस जाता है। क्या ये उसका बुरा वक़्त है, या रामा की अच्छा किस्मत है। क्या भगवन रामा को बाचाना चाहता था और अब उसे, या वो दोनों को किसी न किसी तरह से बाचाना चाहता है। कैसे एक ही पल में उसका सफर और मंजिल दोनों बदल गयी। अब उसकी आने वाली जिंदगी का सफर और मंजिल का फैसला सुबह की किरण करेगी...... 

कलम से 
प्रियंका तिवारी

 

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3 comments:

  1. Beautiful story ! Aisa lag raha tha ki main bhi solo trip me ho !

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  2. Beautiful portrait solo story❤️

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सफर और मंजिल

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