डॉ. राहीस - शाजिया, तुम कही पास के गाँव में ट्रेनिंग करों अगर करनी ही है, या बेटा ऍम .डी (डॉक्टर ऑफ़ मेडिसिन) के बाद करना आराम से ट्रेनिंग।
शाजिया - अब्बू, रूरल (ग्रामीण) ट्रेनिंग से नॉलेज (ज्ञान) मिलेगा और ऍम .डी के बाद मैं ट्रेनिंग स्पेशलाइजेशन में करुँगी। अभी तो फिजिशियन की ट्रेनिंग लेना है। आप तो सब जानते है, खुद डॉक्टर है।
डॉ राहीस - पर अपने बिहार में इतने गाँव है तुम्हें ये दूसरे स्टेट (प्रदेश) के गाँव में ही क्यों जाना है। वह भी उस गाँव में जहाँ सड़के भी नहीं है।
शाजिया - अब्बू, आप समझाये कितना चल्लेंजिंग एक्सपीरियंस (चुनौतीपूर्ण) होगा। और वहाँ कितना कुछ सीखने मिलेगा।
डॉ. राहीस - बेटा वहाँ जातिवाद का बड़ा बोलबाला है। "इट्स नॉट राईट प्लेस फॉर यू" (वो सही जगह नहीं है तुम्हारे लिए)।
शाजिया - ओह्ह अब्बू, मैं सब सम्हाल लूंगी। आप बस फॉर्म सइंग कीजिए।
डॉ. राहीस - शाजिया, तुम न.इ.इ.टी (नेशनल एंट्रेंस कम एलिजिबिल्टी टेस्ट) और अपने कॉलेज की टॉपर हो, कोई भी गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज मिल जाएगा, तो ये परेशानी क्यों मोल ले रही हो। अभी तुम बहुत यंग (युवा) हो, अभी तुम्हे इतना एक्सपीरियंस (तजुर्बा) नहीं दुनिया-दारी का।
शाजिया शेख एक चौबीस (२४) वर्ष की ऍम.बी.बी.एस (बैचलर ऑफ़ मेडिसिन अण्ड बैचलर ऑफ़ सर्जरी) ग्रेजुएट है जो अपनी मेडिकल की ट्रेनिंग के लिए एक पिछड़े हुए आदिवासी गाँव में जाना चाहती है। उनके पिता बिलकुल नहीं चाहते शाजिया वहाँ जाए क्यों की वो एक पिछड़ा इलाका है।
शाजिया - अब्बू, एक्सपीरियंस (तजुर्बा) करने से ही आयेगा। और अब मैं बड़ी हो गयी हूँ। अब दुनिया नहीं देखूँगी तो कब देखूँगी। मैं आपकी बेटी हूँ, बचपन से आपको देख कर सीख ही तो रही हूँ। अब अपनी दुनिया भी जीत लूँ। मैं हर हाल में सब सहमल लूँगी।
मुझे जाने दीजिए न.... प्लीज। ....
डॉ. राहीस बेटी की सुनन कर मान जाते है, और बोलते है...
डॉ. राहीस - शाजिया, डॉक्टर होना आसान है, पर बनना मुश्किल। लोग एक पल में खुदा और दूसरे ही पल शैतान बना देते है। कभी कभी दुसरो की जान छोडो,अपनी जान बचाना मुश्किल हो जाता है बेटा। पर जो भी हो अपने मरीज की जान हर हाल में बचाना। चाहे उसके लिए लड़ना भी पड़े।
पिता के शब्द शाजिया के दिलो दिमाग में बैठ चुके थे। अगले महीने ही शाजिया उस गाँव के लिये निकल गई। पहेल तो पास के एक छोटे रेलवे स्टेशन पहुंची, फिर वह से एक जीप में गाँव के लिए निकली। रास्ता तो था ही नहीं, कच्ची सड़क थी और शाजिया अकेली। जैसे तैसे वो गाँव पहुंची।
गाँव पहुंचने में रात हो गयी। इसलिए उसे जो होस्पिटल (अस्पताल) का क्वॉटर मिला था वहाँ पहुंचते ही सो गयी। क्या हॉस्पिटल !
ये तो एक छोटा प्राथमिक केंद्र जैसा था। यहाँ दो (२) डॉक्टर, डॉ सरला और डॉ निर्मल। एक नर्स और एक कम्पाउण्डर है। सीनियर डॉक्टर सरला जी है।
सुबह शाजिया डॉक्टर सरला से मिलती है।
डॉ. सरला - यहाँ ज्यादा लोग डॉक्टर के पास नहीं आते बल्कि बाबा के पास जाते है। और वह से ठीक भी हो जाते है। जिन्हें वह ठीक नहीं कर पाते वह हमारे पास आते है।
डॉक्टर सरला का रिटायरमेंट (सेवानिवृत्ति) होने वाला है अगले महीने में। वो एक सरल सौभाव की महिला है।
डॉ. सरला - तुम अपने काम से काम रखना और ज्यादा किसी से बोलने ही जरुरत नहीं। तुम बस जो मरीज अस्पताल में आए उन्हें देखो और गाँव के अंदर रहो। गाँव के बाहरी इलाको में जाने की जरुरत नहीं।
शाजिया - पर ऐसा क्यों ????
डॉ. सरला - मैं तुम्हारी गाइड हूँ, जो बोलू उसे मानो । आपकी सेफ्टी (सुरक्षा) के लिये बोल रही हूँ।
शाजिया - पर कुछ चाहिए हो तो ???
डॉ. सरला - हर सप्ताह अस्पताल की गाड़ी शहर जाती है, तुम भी चली जाना।
अलगे एक महीने तक शाजिया डॉ सरला के अंदर ट्रेनिंग करती है। और फिर डॉ सरला अपना रिटायरमेंट ले कर चली जाती। और शाजिया को मौका मिल जाता है गाँव घूमने का। वो गाँव को जान समझ रही थी।
एक दिन वह शाम के समय गाँव के बाहर के इलाके में जा पहुंची और देखती है - कुछ औरते और लड़किया बेसूध चीख चिल्ला रही। कोई बेहोश हो रही है, तो कोई जमीन पर लोट रही है। जैसे सब पागल हो गयी हो।
कुछ गाँव वाले आस पास बैठे बस देख रहे थे।
शाजिया बहुत डर जाती है पर हिम्मत कर के आगे बड़ती है और एक आदमी से पूछती है !
(माहौल में एक डर का साया है, हवा जैसे कुछ अलग ही सेहक के साथ बह रही है)
शाजिया - भइँया क्या होआ है इन्हे ???
आदमी शाजिया को पहचान जाता है और बोलता है।
"मैडम जी ये सब डायन के वश में है, आप यहाँ से चले जाओ। ये डायन अकेली, कमसिन-युवा, विधवा और बूढी औरतो को पकड़ लेती है।"
इतना सुनते ही साजिया घबरा जाती है। वह समझ ही नहीं पाती की करे तो करे क्या। उसके पैर जैसे जम गए हो। ना आगे बढ़ पाती है, और न पीछे जा पाती है। फिर शरीर की पूरी जान लगा कर वहाँ से भाग निकलती है।
शाजिया की सारी रात डर के साये में बीती और दिन को भी चैन न मिला। शाजिया ने ऐसा कुछ पहले देखा ही नहीं था, और जानना चाहती थी इसके बारे में।
डॉ. निर्मल - डॉ. शाजिया आप थोड़ी परेशन दिख रही हो । क्या हुआ, घर की याद आ रही है क्या। (हस्ते हुऐ )
शाजिया - नहीं डॉक्टर। बस कल गाँव के बाहर के इलाके में गयी थी। वहाँ कुछ औरतो और बच्चियों ....... (बोलते बोलते संकोच में रुक जाती है)
डॉ. निर्मल - अच्छा अब समझा, दयानो को देख लिया अपने। चलो अच्छा होआ। वैसे भी हम आपसे कितने दिन छुपाते। आपसे पहल ४ (चार) जूनियर डॉक्टर्स भाग चुकी है। इसलिए डॉ. सरला आपको रोक रही थी। खेर अब आपकी मर्जी है हम आपको रोकेंगे नहीं। आप जाना चाहे तो जा सकती है...... (दबी आवाज में, सांसे भरते हुऐ )
शाजिया - आप डॉक्टर होते होए कैसी बात कर रहे है।
हाँ, घबराई थी मैं ,पर अब जानना चाहती हूँ। हुआ क्या है इनको !
डॉ. निर्मल - देखो शाजिया , एक डॉक्टर होने के नाते हमने हर औरत के सारे टेस्ट (जाँच) करवाये और सबको ऑब्जरवेशन (देख रेख)में भी रखा।
शाजिया - क्या रिजल्ट आया टेस्ट और ऑब्जरवेशन का ?? (उक्सुकता के साथ बोली )
डॉ. निर्मल - कुछ नहीं। सब नार्मल (सामान्य) है। इन औरतो और बच्चियों को कोई परेशानी नहीं, बीमारी भी नहीं है। ये बिलकुल स्वस्थ है।
ये सब आम तोर पर ठीक रहती है। बिलकुल नार्मल ........ पर जब बेसूध और पागल होती है तो सब एक साथ होती है। हमने हर मुमकिन कोशिश की पर कुछ समझ नहीं आया। दवाइयाँ, ट्रीटमेंट, देहोशी के डोस ........ पर कुछ काम नहीं आया।
जब भी ये सब ऐसी होती है, ये बेकाबू हो जाती है।
शाजिया - कुछ तो पता चला होगा आपको।
डॉ. निर्मल - देखने से सच लगता है, डायन का साया है इन सब पर। क्यों की कोई बीमारी नहीं है इन्हे। ये पागल भी नहीं। पर सब एक साथ ऐसे कैसे हो जाती है .....
कोई बेसूध होती, तो कोई बेहोश, कोई चिल्लाती है, तो जमीन पर लोटती है .........
कोई बाल हवा में घूमती है, तो कोई खुद में झूमती है ......... (हताश स्वर में )
शाजिया - पर गाँव के बहार क्यों रखा है ???
डॉ. निर्मल - क्यों की ये डायन अपना साया एक से दूसरी पर फैलाती है। ये सब २ साल पहले शुरू हुआ ।
एक औरत थी, नीमो नाम की। बड़ी अच्छी औरत थी। बगल के गाँव से थी। उसके आदमी ने उसे हमारे गाँव की औरत के लिए छोड़ दिया। उसने हमारे गाँव के हर इंसान के आगे हाँथ जोड़े थे, रो-रो कर बिनती की थी। अरज की थी की उस औरत को समझाये, मेरा और मेरे बच्चे का इस दुनिया और कोई नहीं है। पंचो से भी उसने अर्जी लगाई, पर किसी ने उसके पति को कुछ नहीं बोला। क्यों की उसके पति ने सब का मुँह पैसो से भर दिया था। उसके परिवार में और कोई नहीं था, बस उसका एक बेटा था। उसका बेटा भी पीलिया से बीमार हो कर मर गया। उसका पति उस औरत के साथ शहर चला गया। वह अकेली औरत, बेचारी पागल हो कर पुरे गाँव में भटकती रही और हर किसी को बद्दुआ देती रही। आखिर में उसने पीपल के पेड़ पर फाँसी लगा कर जान दे दी।
उसके बाद कई लोगो को वह रात में उसी पेड़ के पास दिखी।
और जल्दी ही गाँव की औरतों पर उसका साया हो गया।
शाजिया - आप लोगो में से किसी ने इन औरतो और लड़कियों से बात की ???
डॉ. निर्मल - आप से पहले जो ४ (चार) फीमेल जूनियर डॉक्टर्स आई थी ,उनने कोशिश की। पर वह खुद बीमार हो गयी, उस डायन के असर से। इसलिए तो आपको इन सब से दूर रखा।
शाजिया - तो अब इन औरतो और बच्चियों का क्या होगा। उनका खाना पानी।
डॉ. निर्मल - ये सब भगवन के भरोसे है। कुछ लोग बचा हुआ खाना इनके लिए रख आते है अपने मान से, नहीं तो ये बेचारिया भूखी मरती रहती है। इनमे से कुछ है जो गाँव के घरो में खाना चुरा कर खुद खा लेती है।
वैसे बिच-बिच में बाबा जी आते है। तो गाँव वाले उनके बोलने पर इनको अच्छा खाना और कपड़ें दे आते है। जब तक बाबा जी गाँव में रहते है ये औरते ठीक रहती है।
शाजिया - बाबा जी ??
ये वही बाबा जी है क्या जिनके बारे में डॉ. सरला बाता रही थी।
डॉ. निर्मल - हाँ ये वही बाबा जी है। वह जड़ी बूटियों और ध्यान विद्या से गाँव वालो का कई सालो से इलाज कर रहे है।
शाजिया कई दिनों तक उन औरतो को गाँव के बाहर देखने जाती रही। शाजिया को गाँव वाले अब डायन डॉक्टर बोलते थे। इसी बिच गाँव में बाबा जी का आगमन होआ। शाजिया बाबा जी से मिलने गयी।
दूसरी तरफ गाँव में डायनो की आबादी बढ़ती जा रही थी। गाँव वालो ने इठक्का हो कर ये फैसला कर लिए था, की इन सारी औरतों और लड़कियों को गाँव के बाहर दूर बीहड़ो में छोड़ आयेंगे।
बाबा जी - बेटी तुम ही हो जो इन औरतो का इतना ध्यान देती हूँ।
शाजिया - बाबा जी क्या होगा इन औरतो का।
बाबा जी - मैं कोशिश कर रहा हूँ। जब तक हो सकेंगे इनको बचाऊँगा।
इसी बिच बाबा जी और शाजिया को गाँव वालो के फैसले का पता चला।
शाजिया - बाबा ! ये भूखी -प्यासी मर जाएँगी।
बाबा जी - हम कोशिश करेंगे की ऐसा न हो। तुम उम्मीद न छोड़ो शाजिया। तुम समझदारी से काम लो।
बाबा शाजिया को समझाते है। उसे तसल्ली देते है और शाम वही गुजरने बोलते है ताकि वह बेचैन न हो। शाजिया रात में अपने क्वॉटर पहुँचती है।
शाजिया (खुद से ) - बाबा की बातो से सुकून की शाम तो गुजर गयी, पर रात भरी थी। दिन में चट्टान की तरह मज़बूत आदमी भी रात के काले-वीराने-अँधेरे में कितना कमजोर हो जाता है। रात के अकेलेपन में इंसान कितना बेबस हो जाता है। उसे हर वो अधूरी बात, न-मुकम्मल ख़्वाब, गेहरा जख्म , दुःख, डर और दर्द याद आ जाता है जिससे वह दिन में भूल जाता है। रात के अकेलेपन में हर कोई कमज़ोर हो जाता है। (फिर कुछ सोचने लगती है)
या खुदा !!
ये तो सच में !!!
(खुद से ऐसा बोलते ही शाजिया कुछ खोजने लगती है और इसी में सुबह हो जाती है)
सुबह होते ही बाबा से मिलने जाती है और फिर गाँव वालो से बोलती है।
शाजिया - बाबा जी ने इन औरतो से डायन निकलने की सिद्धि खोज ली है, पर अगर हमने इन औरतो को गाँव से बहार निकल दिया तो डायन गाँव को बर्बाद कर देगी।
गाँव वाले (घबराते होए) - तो हम क्या करे। हम इन्हे ज्यादा बर्दाश नहीं कर सकते।
शाजिया - बाबा एक महीने में आपको इन डायनो से छुटकारा दिला देंगे। पर हम सबको मिल कर काम करना होगा नहीं तो डायन हम पर हमला कर सकती है या करवा सकती है।
गाँव वाले - हममे क्या करना होगा।
शाजिया - इन २५ औरतो को गाँव के २५ घरो को देखना होगा। जिस भी औरत या लड़की को घर वाले चुनेगे वो उनके साथ रहेगी। इनसे कोई भी गलत बात या व्यवहार नहीं करेगा। इनके साथ बिलकुल आम तरीके से रहेंगे। नहीं तो डायन इन पर फिर हावी हो जाएगी किसी भी वक़्त।
मेँ दिन में दो बार हर घर आउंगी और इन डायनो को कुछ वक़्त में लिए अपने साथ ले जाउंगी पूजा कराने। बाबा जी ने पूजा की विधि बना ली है।
गाँव वाले - और क्या होगा अगर ये एक महीने में भी डायन के वश से बहार नहीं आई तो।
शाजिया - तो फिर आप सब जैसा चाहे कर सकते है।
गाँव वालो ने शाजिया की बात मान ली। शुरू में डायन के साया ने इन औरतो और बच्चियों को थोड़ा परेशान किया, वह थोड़ा बेकाबू होती रही कभी कभी। पर १५ दिन में ही डायन का साया आना कम हो गया।
आज एक महीना ख़तम होना था। वैसे तो सारी औरतो और बच्चियों डायन के साये से बहार थी पर एक सिमा नाम की औरत अभी की डायन के वश में थी।
गाँव वाले - ये सिमा डायन को बहार करो गाँव से। बाकि सब डायन के साये से मुक्त है अब।
शाजिया - ये भी डायन के साये से मुक्त हो जाएगी। बस थोड़ा और वक़्त दीजिये हममें ।
गाँव वाले - इस डायन को तो मर ही डालो। आज ही ये किस्सा ख़तम हो जाएगा।
शाजिया - अरे आप लोग शान्त हो जाइये। बात समझिये।
गाँव वाले - इस डायन को अब हम और बर्दाश नहीं कर सकते। मर डालो इसे। (गुस्से में )
शाजिया - बस.... (ऊंची आवाज में )
डायन ये औरते और बच्चिया नहीं है !
बल्कि हम लोग शैतान है, रक्षास है। किसी बेरहम जल्लाद से ज्यादा बत्तर है हम !
इस औरतो या लड़कियों पर कोई डायन का साया नहीं है। बल्कि ये सब बीमार है !
इन्हे "मास हिस्टीरिया" है। ये एक मानसिक बीमारी है।
इस बीमारी के कारण ही ये ऐसे बेसुध चीखती चिलाती है।
आप लोगो ने देखा नहीं, ये सारी औरतो और लड़कियों या तो मजबूर है या बेसहारा। अगर इनके घर भी है तो इन पर कोई ध्यान नहीं देता। या तो इन्हे नजरअंदाज किया जाता है। इन्हे किसी चीज़ की तरह रखा जाता है, इंसान तो कोई मानता नहीं। इस अकेलेपन और बेबसी के कारण ही इन औरतो को ये बीमारी हो गयी।
आप लोग अगर ध्यान दे तो, इनमे से कोई बेवा है, तो कोई अनाथ है। किसी का पति दूर-देश है, तो कोई नज़र-अंदाज की हुई बुजुर्ग है।
बाबा जी - शाजिया ठीक बोल रही है। अगर हम दोनों आप लोगो को ये पहले बताते तो आप लोग शायद मानते नहीं।
शाजिया - नीमो के किस्से ने इन सब के अंदर के डर को , और इनके अकेलेपन को बीमारी में बदल किया। "मास हिस्टीरिया" में !
ये बीमारी एक से दूसरे में फैलती है। "मास" का मतलब का "भीड़"। ये एक मानसिक बीमारी है। ये एक साथ कई लोगो को होती है। ये बीमारी अकेलेपन और अधूरेपन के कारण होती है।
बाबा जी - मैंने और शाजिया ने मिल कर इन औरतो का इलाज़ करने के लिए, ये एक महीने की विधि का बहाना बनाया। शाजिया ने इस बीमारी के बारे में पढ़ा और डॉ. निर्मल के साथ मिल कर इलाज बनाया। डॉ. निर्मल ने जरूरी दवाएं अलग-अलग शेहरो से मँगवाई।
शाजिया - आप लोगो के प्यार और अपनेपन ने इन औरतो का आधे से ज्यादा इलाज कर दिया। रोज़ पूजा के बहाने मैं इनका चेक उप, हाल और दवाईयाँ लेती-देती रहती थी।
सच मानिये तो इनका इलाज हमने नहीं, आप गाँव वालो ने किया है। अब प्लीज (कृपया) इनको अपना भी लीजिये।
गाँव वालो के चेहरों पर लज़्ज़ा और पछतावे के भाव थे, और इन औरतो के चेहरों पर सुकून। इन औरतो और बच्चियों की हिर्दय बह्व-विभोर हो गए थे। गांव वालो ने इन औरतो और बच्चियों को अपना लिया था, और इनने गाँव वालो को। सब अपने घर चले जाते है।
बाबा जी - डॉक्टर डायन (हस्ते हुए)। अपने तो पुरे गाँव का ईलाज कर दिया एक साथ। कैसा लग रहा है।
शाजिया - अच्छा लग रहा है (सोचए हुई भाव के साथ बोली)
बाबा जी - क्या हुआ शाजिया, क्या सोच रही हो ??
शाजिया - (विचारपूर्ण भाव के साथ) इन परिस्थियों को देख-समझ कर मेरे मान में एक ख्याल आया है।
बाबा जी - क्या शाजिया।
शाजिया - हम अपनों को चलना सिखाते है, बोलना सिखाते है, पढ़ना-लिखना सिखाते है, पैसे कामना सिखाते है। पर हम सब को अकेले रहना क्यों नहीं सिखाते।
बाबा जी - ऐसा विचार क्यों आया तुम्हारे मान में शाजिया।
शाजिया - बाबा जी। इन औरतो को ये बीमारी इसलिए हुई क्यों की इन पर इनका अकेलापन हावी हो गया। ये बेसहारा थी, इसलिए ये सब हुआ इनके साथ।
आज के वर्तमान समय में मुझे लगता है की हमें लोगो को अकेले रहना भी सीखना चाहिए। खुद से प्यार करना भी सीखना चाहिए। खुद के लिए जीना भी सीखना चाहिए।
क्यों सही बोल रही हूँ न ??
बाबा जी शाजिया की बाते सुन्न कर वहाँ से मुस्कुराते हुऐ चले जाते है।
कलम से
प्रियंका तिवारी
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Special Thanks to Dr. Pragati Gupta (Bhikangaon, Khargone (M.P)) for her guidance and knowledge about the curriculum of M.B.B.S.