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Sunday, July 28, 2024

सफर और मंजिल

सफर और मंजिल
ये मेरी पहली सोलो ट्रिप (अकेल सफर) होने वाली है। इतनी मुश्किल से इस सफर के लिए सब प्लान (प्रबन्ध) किया  है और निकलने को उत्सुक हूँ। सब से बड़ी बात, किसी को पता नहीं की मैं सफर पर निकली हूँ। थोड़ा तो कुछ नया और एक्ससिटिंग (रोमांचक) होना चाहिए लाइफ (जीवन) में। प्लान (योजना) तो बहुत सिम्पल (आसान) है, हर जगह की ट्रैन की टिकट और होटल की बुकिंग एडवांस (पहले से) करवाँ ली है। क्यों की मैं जोब (नौकरी) के कारण अकेली रहती हूँ, तो मुझे निकलने में कोई दिक्कत नहीं होगी। प्लान (योजना) तो काफी पहले बना लिया था, पर किसी को बताया नहीं ताकि कोई रोक-टोक न लागा दे। आज भी हिन्दुतान में अकेले लड़की का बाहर जाना, वह भी लम्बे सफर पर कोई ज्यादा सही नहीं समझता। खैर, एक हफ्ते की बात है, मैं घूम कर लौट आऊंगी। सामान सब बाँध लिया है, और बस सुबह का इतंजार है। दिल्ली से केरला का सफर थोड़ा लम्बा तो है, पर मेरे लिए बिलकुल सही है। हर चीज पर ध्यान दिया है मैंने, ट्रेन का रास्ता, समय, सुरक्षा और मंज़िल। मुझे ट्रेन से सफर करना बचपन से पसंद है, मेरा बस चले तो हमेशा ट्रैन में रहूँ। एक अलग ही जुड़ाव है मेरा ट्रेन के सफर से, बस दिल ,मंत्रमुद्ध हो उठता है । 

तो आज रविवार है और सुबह से मन में हलचल है, चार बार सब चेक (जजच) कर चुकी हूँ, की कुछ छुटा तो नहीं। भाई, चालीस-इकतालीस घंटो का सफर है, तीन हज़ार किलो-मीटर दूर मुझे कोल्लम पहुंचना है, और फिर बीचस (समुद्र तट), मंदिर, वाटर बोट रेस सब देखना है। शाम चार बजे दिल्ली हज़रत निजामुद्दीन स्टेशन के लिए निकल रही हूँ, और सच बताओ एक अलग ही उत्साह और घबराहट का मिला-जुला भाव है अंतर-मन में। मैं, इरा हूँ और ये मेरा पहला सोलो ट्रिप (अकेल सफर) है। 

टैक्सी में स्टेशन जाते हुए  :
इरा : भईया सारा सामान रख दिया है न ?
टैक्सी चालक : हाँ मैडम। 
इरा : भईया जल्दी करो स्टेशन पहुंचना है। 
टैक्सी चालक : अरे, आप निशचिंत रहो। 

राजधानी एक्सप्रेस को देख कर तो मन ही प्रफुल्लित हो उठा। ऐसा लग रहा है, "जैसे जंगल में मोर ने पहले सावन की फुहार देख ली हो और अब बस नाचने के लिए पँख फैला रहा है"। मैं तो बस ट्रैन में बैठ कर ये सोचने में लग गयी की कैसे-कैसे घूमना है और कहा-कहा जाना है। पहले  तो दिल्ली हज़रत निजामुद्दीन स्टेशन से ट्रैन से कोल्लम पहुंचना है और फिर घूम कर कोच्ची जाना है। कोल्लम में दो तीन रुकना है और फिर कोच्ची के लिए निकलना है. लगभग तीन घन्टे का रास्ता है कोल्लम और कोच्ची के बीच। कोच्ची में दो दिन रुक कर फिर वापसी करनी है। 

कितनी जगहे देखनी है। खैर, ट्रैन में बैठी तो मज़े की बात ये हुई की मेरे सामने वाली सीट पर भी एक लड़की ही है "रामा" नाम की। कुछ देर में हमारी बाते शुरू हो गई, क्यों की सफर लम्बा है। 

(इरा रामा से बात करते हुए )
इरा : तो आप भी कोल्लम जा रहे। 
रामा : हाँ। 
इरा : आप भी अकेले हो क्या। 
रामा : अभी तो हूँ, पर कोल्लम में मेरे दोस्त आ रहे है। 
          आप अकेले हो क्या। 
इरा : हाँ, मैं तो सोलो ट्रिप (अकेल सफर) पर निकली हूँ। 
रामा : पर आप चाहो तो हमारे साथ चलो। 
इरा : हमारा होटल भी पास है। 
रमा : हाँ , मेरा भी पास ही है। 
इरा : चलिए अभी तो साथ ही सफर करते है। कोल्लम पहूँच कर देखते है। 
रामा : हम लोग ठेवले महल, अमृतपुरी मंदिर, जटायु केंद्रे, महात्मा गाँधी बीच, अष्टमुडी तालाब .... 
इरा : अरे बस-बस, मैं इतनी जगह नहीं जा रही। मैं आराम आराम से घुमूंगी। 
रामा : वो भी अच्छा है। 
इरा : मुझे फिर कोच्चि भी जाना है।  
        बोट क्रूज, मट्टनचेर्री महल, हिल पैलेस म्यूजियम और फिर हाउस बोट में रहूंगी..... 
रामा : बाप..... रे, लिस्ट (सूची) तो तुम्हारी भी लम्बी है। 

हमारी बात लम्बी चली। 
रात को मैं अपनी किताब पढ़ रही हूँ और घर वालो को टेक्स्ट (संदेश) लिख रही हूँ। घर पर अभी भी किसी को नहीं पता की मैं कहा हूँ। और मैं ये सोच कर ही एक्साइट (रोमांचित) हो रही हूँ। घर जाकर सब को इस ट्रिप की बाते और कहानिया सुनाऊँगी। मम्मी तो मुझे पहले डाटेंगी, फिर मुझे उन्हें मनाना होगा। पापा तो बस बोलेंगे, बेटा ऐसा नहीं करते कुछ हो जाता तो। खैर सब अच्छा होगा। 

अब नींद आ रही है।  सोने से पहले बाथरूम (शौचालय) चली जाती हूँ। रामा से भी पुँछ लेती हूँ। साथ ही चल लेंगे दोनों। 
दोनों साथ में बाथरूम (शौचालय) जाती है, बस इरा रामा का बाथरूम के बाहर इंतजार कर रही है की इतने में एक टनल आ जाती है और हर जगह अँधेरा हो जाता है

"ये कहाँ हूँ मैं", इरा ने मन में सोचा। वह एक अलग ही जगह है अब। 

इरा का सिर भी बहुत भारी है। इरा को होश आता है तो वह खुद को एक खली कमरे में पाती है। उसके हाँथ पाँव बँधे हुए है। और उसे बाहर से दो आदमीयो की लड़ने की आवाज आ रही है। 

लखन : राजन, ये वो लड़की नहीं है। 
राजन : लखन ,अरे मुझे वही लगी। 
लखन : एक काम ठीक से नहीं होता तुम लोगो से। 
राजन : अब क्या करे। 
लखन : अब इसी लड़की से काम बनाते है। 

इरा समझ जाती है की जब ट्रैन टनल से घुसी तो उसे पीछे से आ कर किसी ने कुछ सुंघा दिया होगा और वह बेहोश हो गयी। शायद ये लोग रामा का किडनैप (अपहरण) करना चाहते थे पर हम दोनों की कद-काठी इतनी एक सी थी की मुझे रामा समझ कर ले आये। इरा को किसी के आने की आहट मिलती है और वह वापस बेहोश होने का नाटक करने लगती है। 

लखन : इसे अभी तक होश नहीं आया। 
राजन : मर तो नहीं गयी। 
लखन : कितनी दवा डाली थी। हे राम, अब क्या ये लड़की भी हाँथ से गयी। 
राजन : (इरा की नाक के आगे हाथ हिलाते हुए) साँसे चल रही है। कुछ देर में होश आ जाएगा। 
लखन : पता करो कौन है ये, इसका बाप कौन है, कहाँ से है ?

तीन घंटे बाद लखन इरा के ऊपर पानी डाल देता है। अब इरा डर कर उठ जाती है। 

लखन : कौन हो तुम ?
इरा : इरा अय्यर (डरते हुए) 
लखन : कहाँ से हो तुम ?
इरा : दिल्ली।
लखन : क्या करती हो और घर वाले क्या करते है ?
इरा : मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ती हूँ और पापा की किराना की दुकान है। 
लखन : अपने बाप का नंबर दो। 
इरा : भईया मुझे जाने दो। मिडिल क्लास घर से हो। 
लखन : नंबर देती हो या लगाओ एक। 
राजन : लखन ,पुलिस इस लड़की हो खोज रही है। वो जिस लड़की को उठाना था न उसने पुलिस बुला दी इसके लिये।  
लखन : यहाँ से निकलते है अभी। रात है, आसानी से निकल जाएँगे। 
राजन : उठाओ इसे और गाड़ी में डालो। 
लखन : उठ लड़की और चुपचाप चल, नहीं तो हालत ख़राब कर दूंगा। 

इरा के पास कोई रास्ता नहीं है। वह चुप चाप लखन की बात मान कर चल देती है। इरा इतना समझ गयी है की अभी बस इन लोगो की बात मान लेना ही उसके लिए सही है। 

लखन उसे गाड़ी की पीछे वाली सीट पर बैठा देता है। गाड़ी चलने लगती है।  यहाँ इरा अपने घरवालों की बात याद कर के ऑफ्सोस कर रही है और सोचती है ;

काश मैंने घर पर बताया होता की मैं कहा जा रही हूँ। 
काश मैं अकेली ना आयी होती।
काश मैंने आखिरी बार सब से बात कर ली होती। 
काश उन्हें बताया होता मैं उनसे कितना प्यार करती हूँ। 
काश थोड़ा और वक़्त गुज़र लेती उन सब के साथ। 
अगर घर न लौटी तो माँ-बाबा का क्या होगा। 
ये मेरे साथ ही क्यों हो रहा है, मैंने तो कभी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा। 

पर अभी भी कोशिश करुँगी मैं, इन लोगो के चंगुल से निकलने की। 
उम्मीद नहीं हरने वाली मैं। 
पर दिमाग से काम लेना होगा और भगवान सब साथ देंगे। 

इरा के हाँथ पाओ बढ़े है और मुँह पर टेप लगा है। गाड़ी किसी हाईवे पर अचानक रुक्क़ जाती है। इरा शांति से देखने लगी। 

लखन : गाड़ी रुक्क़ क्यों गयी, जारा देखना राजन। 
राजन : देखता हूँ। 
            कुछ खराबी आ गयी है पास में मैकेनिक देखना होगा। 
लखन : अब ये क्या मुसीबत है। देख लड़की चुप चाप रहना नहीं तो जान से हाँथ धो बैठेगी। 
इरा : सर हिला कर हाँ बोलती है। 
राजन : भईया, इसे गाड़ी में किसी ने देख लिया तो दिक्कत हो जाएगी। क्यों न इसे रोड के बदल के जगल बाँध कर चले। 
लखन : बात सही है। इसे किसी पेड़ से बाँध देते है थोड़ा दूर। किसी को रात में दिखाई भी नहीं देगी। 

लखन और राजन इरा को रोड के बगल के जंगल में एक पेड़ से बाँध देते है। दोनों गाड़ी में लॉक (टाला) लगा कर पास में मैकेनिक देखने निकलते है। इरा उनके कुछ दूर जाने का इंतज़ार करती है और भगवन से प्रार्थना करती है की उसे बचाले और यहाँ से निकले। अब इरा अपनी रस्सी खोलने की कोशिश में लग जाती है। बड़ी मुश्किल से उसकी रस्सी ढीली पड़ गयी और वह किसी तरह निकल पाई। बस फिर क्या इरा जंगल में भागना शुरू कर देती है। रास्ता तो पता नहीं  है  इसलिए इरा रोड के पास ही रह कर किसी पास की बस्ती में पहुंचने की कोशिश करती है। इधर राजन और लखन वापस आ गए है। उन ने देखा इरा वहाँ नहीं है तो वह उसे खोजने लगे। 

इधर इरा ज्यादा दूर नहीं निकल पाई है। उसे जंगल में किसी के भागने और बोलने की आवाज आ रही है। वह समझ गयी की लखन और राजन उसे खोजने में लगे है। वो पास की एक बस्ती में पहुँच गयी पर अब उसे लखन और राजन की साफ़ आवाज आ रही है।  रात का वक़्त है, गालियां खाली थी बस आवारा कुत्ते घूम रहे है। इरा सोच रही है की कही कोई कुत्ता उस से देख कर भोकने न लगे, नहीं तो लखन और राजन को उसका पता चल जाएगा। आवारा कुत्तो की उहार उसे और डरा रही है। उससे ऐसा लग रहा है जैसे कोई उसका शिकार करने उसके पीछे लगा है । पर वो किस्से मदद माँगती, ऊपर से अगर किसी का दरवाजा खटखटाती है तो क्या पता लोग दरवाजा खोलते है भी या नहीं। 

इरा ने भगवन को याद किया। अचानक ही इरा के पैर पर कुछ लगा। उसने देखा की किसी के दुकान की अंडरग्राउंड (भूमिगत) पानी की टंकी खुली रह गयी थी। रोशिनी ज्यादा है नहीं यहाँ पर। इरा को पानी का इस्त्र और टंकी की गहराई भी समझ नहीं आ रही है। उधर लखन और राजन की आवाज भी और पास आने लगी है। एक तरफ कुआ है और दूसरी तरफ खाई। अब बस वक़्त नहीं है, ये सोचते ही इरा पानी की टंकी में उतर जाती है। ऊपर वाले ने फिर साथ दिया और पानी केवल इरा के घुटनो तक है। इरा अब बस उम्मीद कर रही है की किसी तरह सुबह हो जाए और सुबह की किरण के साथ उसकी जिंदगी की ये काली रात ख़तम हो। वह बस पानी की टंकी के ढक्कन के छेद को ताक रही है इस उम्मीद में की दिन का उजाला देखेगी। उम्मीद कर रही है की वह अपने घर फिर जा पाएगी, अपनों से मिल पाएगी और उनको बता पाएगी की कितने अहम है वह सब उसके लिए। उसे लखन की गुस्सैल आवाज साफ़ आ रही है;

"खोजो उसे नहीं तो दोनों को कुछ नहीं मिलेगा, सुबह होने से पहले" 

वह बार-बार सोच रही है की कैसे दो लोगो की किस्मत एक ही वक़्त में एक जगह पर होने से बदल गयी। जहाँ रामा को होना चाहिए था वहाँ कैसे वह आ गयी और जहाँ उसे होना चाहिए था वहां कैसे रामा पहुँच गयी। एक इंसान कैसे सही होते हुए भी गलत परिस्थितियों में फस जाता है। क्या ये उसका बुरा वक़्त है, या रामा की अच्छा किस्मत है। क्या भगवन रामा को बाचाना चाहता था और अब उसे, या वो दोनों को किसी न किसी तरह से बाचाना चाहता है। कैसे एक ही पल में उसका सफर और मंजिल दोनों बदल गयी। अब उसकी आने वाली जिंदगी का सफर और मंजिल का फैसला सुबह की किरण करेगी...... 

कलम से 
प्रियंका तिवारी

 

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Friday, July 3, 2020

नमक के मजदुर और उनकी मजबूरी - कच्छ का रण


चेतना बेन : इस बार हम कच्छ के रण क्षेत्र, गुजरात जा रहे है और तुम भी चल रहे हो, अपना सामान गर्मी और मानसून के हिसाब से रख लो। 
राजू भाई : हम लोग वहाँ  के क्षेत्र में पाए जाने वाले पशु और  पक्षीयो पर अध्यन करेंगे। वह के नमक के मजदूरों के विकास कार्यो की रणनीति पर भी विचार विमर्श और उसकी रूप रेखा निर्धारित करेंगे।
केतन : मैं वहाँ क्या करूँगा माँ। 
राजू भाई : तुम्हारे लिए एक अच्छा एक्सपीरियंस (अनुभव) होगा। 
चेतना बेन : तुम्हे पता है वहाँ दुनिया का एकलौता  वाइल्ड अस्स सैंक्चुअरी (जंगली गधा अभ्यारण्य) है,  "इंडियन वाइल्ड अस्स वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी"। 
केतन : हाँ पापा गधो को देखन अच्छा  एक्सपीरियंस (अनुभव) होगा। हहहह [ठहाके लगते हुए]
राजू भाई : ओह्हो केतन, तुमको वह कितना देखने-समझने को मिलेगा। वहाँ का कल्चर (सभ्यता) , लोग, रेहन-सेहेन, वाइल्डलाइफ (वनप्रजाति), एट्सेटरा (आदि)। 
चेतना बेन : केतन थिस इस इम्पोर्टेन्ट फॉर योर स्टडीज, एंड इतस फाइनल (ये तुम्हारी पढ़ाई के लिए जरुरी है और ये सुनिश्चित हो गया है)
केतन : ओके माँ आप अब गुस्सा मत हो। मैं वहाँ के बारे में रिसर्च (अन्वेषण) कर लेता हूँ। 
राजू भाई : कुछ इंडियन क्लोथ्स (भारतीय वेशभूषाएं) रख लेना।  
केतन :आप लोग वह ले जा कर मेरी शादी तो नहीं करा रहे न। लुक आई हैव ऐ गर्लफ्रेंड (मेरे पास  प्रेमिका है) [व्यग के स्वर में ]
चेतना बेन : क्या वो बेचारी अभी भी है, मुझे लगा तुझ जैसे पागल से परेशान हो कर देश छोड़ कर भाग  गई। इसलिए तेरी दुल्हन एक प्यारी सी हिंदुस्तानी  संस्कारी और धीरज वाली लड़की ला रहे थे, क्योकि वो ही तुम जैसे पागल के साथ उम्रभर निभा सकती है। [व्यग के स्वर में ]
केतन : हाँ मम्मी जैसे आप पापा के साथ हो।  [व्यग के स्वर में ]
 राजू भाई : एएए .... केतन अपने बिच में मुझे क्यों घसीट रहे हो। बस बस और नहीं। 

जैसा की आप लोगो ने देख ही लिया होगा मेरे माँ-पापा कैसे मुझे कच्छ, गुजरात ले जाने पर उतारू है। ये तो साफ़-साफ़ जबरदस्ती है। पर क्या करू माँ-बाप है, मानना तो होगा। खेर मेरा नाम केतन मेहता है। मैं और मेरा परिवार लॉस एंजेल्स, कलिफोनिअ में रहता है। मैं "यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथर्न कलिफोनिअ" से जर्नलिज्म (पत्रकारिता) पढ़ रहा हूँ। मेरी माँ "चेतना बेन मेहता" और पापा "राजू भाई मेहता" पेशे से ज़ूलॉजिस्ट है और साथ ही साथ सोशल एक्टिविस्ट (सामाजिक कार्यकर्ता) है। वह यहाँ और इंडिया (भारत) के कई जगहों में अपना सोशल वेलफेयर (समाज कल्याण) का काम करते है। वह बचपन से मुझे अपने इंडियन टूर्स (भारतीय यात्राओं) में साथ ले जाते रहे है ताकि मैं अपने देश को जानू, उसकी सभ्यता को समझू। आज भी इंडिया (भारत) में इनका दिल बस्ता है और ये हर हिंदुस्तानी की हिर्दय संवेदना है। खेर एक बात तो है गुजरात की गर्मी सहना आसान नहीं होगा। मैं पहले भी गुजरात जा चूका हूँ और बीमार हो कर लौटा हूँ। क्यों की मैं बचपन से लॉस एंजेल्स में रहा हूँ। खेर मम्मी-पापा मुझे फिर भी वह ले जाएंगे ताकि मैं अपनी मिटी से जुड़ा राहू।

चेतना बेन : केतन तुम्हारी कच्छ के रण क्षेत्र की रिसर्च (अन्वेषण) कैसी चल रही। मुझे उम्मीद है तुम अपना डाक्यूमेंट्री प्रोजेक्ट वही पर बनाओगे। 
केतन : सच में माँ मुझे पता नहीं था वहाँ पर इतना सब देखने को है। आईएम रियली एक्ससिटेड नाउ (मैं अब वास्तव में उत्साहित हूँ ) मैं वहाँ  की बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी (जैविक-विविधता) देखना चाहता हूँ। मैं जानना चाहता हूँ की वहाँ  के अगरिया समुदाय के नमक के मजदूरों या किसान  कैसे रहते है इतनी परेशानियों के बिच और इतने कम पैसे में। 
चेतना बेन : तुम्हे जानना चाहिए, जरूर जानना चाहिए [मायूसीभरे स्वर में वह ये बोलते हुए चली जाती है ]। 
  
२० (२०) नवम्बर, आखिर वो दिन आ गया। हम ध्रांगधरा जो लगभग ४५ (45) किमी की दुरी पर "इंडियन वाइल्ड अस्स वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी" पहुँच गए है। यहाँ का तापमान लगभग ३०-३५ (30-35) डिग्री है जो की अम्म तौर के तापमान से कम है। हमने पास में ही एक होटल लिया, वह से गाड़ी से कच्छ के रण के लिए निकले। एक बड़े ही प्यारे से मड-हाउस (मिट्टी का घर) में हमने अपने आने वाले एक महीने का बसेरा बसाया जो सैंक्चुअरी से कुछ किमी दुरी पर है। सैंक्चुअरी का क्षेत्रफल ४९५४ (4954) वर्ग किमी है और यहाँ आते ही पापा और मम्मी अपने कामो में लग गए। माँ-पापा ने अपना प्लान (योजना) तो घर पर ही बना लिया था और आते ही उसमे लग गए। हम सैंक्चुअरी के क्षेत्र में घूमते हुए जानवरो और पक्षियों को देखते और साथ में माँ-पापा अपना अध्यन से जुड़े काम करते रहते है। पर न जाने वह इस बार कुछ अलग ही खोज रहे है समझ ही नहीं आ रहा, जैसे किसी अपने की तलाश में है। मैं कोई मनोविज्ञानी नहीं, पर उनकी बेचैनी साफ़ देख और समझ सकता हूँ, शायद वह मुझे बताना नहीं चाहते।

रण  का इकोसिस्टम (पारिस्थितिकी तंत्र) बड़ा उन्नत है। माँ-पापा हर २-३ दिन में यहाँ के अगरिया समुदाय के नमक के मजदूरों से मिलते है जिनके विकास के लिए वह कई सालो से काम कर रहे है। उनके स्वयं सहायता समूह के कामो का जाएजा लेना, उनको जागरूक करना, महिलाओ को काम सिखावना, स्वस्थ सम्बन्धी सेवाएं दिलवाना और उनको कैसे सहयता राशि मुहैया कराए, आदि विषियो पर बात-चित जैसे काम में माँ-पापा लगे रहते। इन नमक के मजदूरों और किसानो की हालत बड़ी दयनीय है। माँ-पापा के सामाजिक कार्य देख मुझे बहुत सौभाग्यशाली और गर्वान्गिता महसूस होता है की मैं उनका बेटा हूँ। इसी बिच हम अस्स-पास के इलाक़े में भी घूमने जाते रहते है। ये अगरिया समुदाय के नमक के मजदूर और किसान हमें अपने घर भी बुलाते रहते है और हम जाते भी है। कई लोग माँ-पापा को बड़े अच्छे से जानते है। पर अक्सर माँ-पापा मुझसे  चुप उनसे बात करते और एक नाम की खोज में लगे रहते है, "शारदा बेन खखाड़िया"

इस रण की संस्कृति भी बड़े लुभावानि और विविद है। हम जब रण उत्सव में गए तो मैं तो हैरान ही रह गया। मैं तो समझ ही नहीं पा रहा हूँ की इस डाक्यूमेंट्री मे क्या-क्या डालू, यहाँ का लोक गीत-संगीत और नित्य जैसे गजियो या रंगीन विषभूषा या लोक कला। और खाने की तो बात मत पूछो, कढ़ी-रोटला, चक्रदा पकवान और पता नहीं क्या-क्या। मुझे हर एक जाते पल के साथ इस मीठी से प्रेम होता जा रहा है। लेकिन न जाने इस वयस्तत में भी माँ-पापा किसे खोजने में लगे है। 

सैंक्चुअरी और रण के क्षेत्र में हमने कितने पशु, पक्षी और वनस्पति देखे, मुझे तो सब के नाम भी याद नहीं हुए। वहाँ इतने सरे है जैसे जंगली-गधो, नील-गाय, लकड़बग्धा आदि। "इंडियन वाइल्ड अस्स वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी" के एशियाई जंगली गधे, जिन्हे यहाँ के लोग "खुर" बोलते है की चल किसी मदमस्त हाथी से कम नहीं। ये गधे एक विलुप्त हो रही प्रजाति के है इसलिए इन्हे इतना संरक्षण हासिल है। आपको बताओ तो यहाँ २०० (२00) तरह के पक्षी देखे जा सकते है और उसमे से कई प्रवासी पक्षी है जैसे यूरोपीय रोलर (नीलकंठ), लैसर फ्लोरिकन (खरमोर) आदि। जितने सूंदर और विशाल फ्लेमिंगो (मराल) मैंने यहाँ देखे शायद ही कही देखे होंगे। इस बंजर वीराने में एक अलग ही सुंदरता है और यही मिलते है नमक के खेत।

ये वही  नमक के खेत है जहाँ पर अगरिया समुदाय के नमक के मजदूरों या किसान ५० (50) डिग्री की कड़ी धुप में ८ (8) महीने कड़ी मेहनत करते है नमक बनने के लिए। इस नमक की खेती में इनका पूरा शरीर और उम्र गाल जाती है, एक औसतन नमक के मजदूरों या किसान की उम्र केवल ५०-५५ (50-55) वर्ष ही होती है। इनके पुरे शरीर पर नमक का घातक आसार होता है, ये वक़्त के साथ उम्र से पहले अंधे होने लगते है , इनके पुरे शरीर की त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है। इनको कई बीमारिया भी हो जाती है, खास तौर पर त्वचा सम्बन्धी। यहाँ तक की इनके हाथ और पैर नमक के खेतो में काम करते-करते सार्ड जाते है।  इस पेशे से जुड़ी हुई सबसे भयावल सच्चाई इनके अंतिम संस्कार के वक़्त दिखती है। इनके पैर देह-संस्कार के वक़्त नहीं जलते क्यों की वह सर्ड कर सख्त हो जाते है, एक पत्थर के सामान। नमक के मजदूरों के लिए यहाँ एक कहावत है की, "इनके शरीर में खून नहीं नमक बेहता है"। और इतनी मेहनत का इन्हे क्या मिलता है, जरा सोचिये। कोई हज़ारो-लाखो रुपये नहीं, बल्कि ६०-७० (60-70) रुपये पर १००० (1000) किलो। बिचौलिये, व्यापारी और बड़ी कम्पनिया सारा मुनाफा कमाती है। अक्सर ये  नमक के मजदूर और किसान घाटे में ही अपना नमक बेचते है क्योकि ज्यादातर पैसा तो इनके जनरेटर के तेल में ही चला जाता है। ये तपती धुप में अपने हाथो से कितने कुँए खोदते है तब जा कर कही किसी एक कुँए में इन्हे नमक का पानी मिलता है। उस पानी को ८ (8) महीने तक खरोंचते है तब जा कर नमक बनता है। यहाँ इनके बच्चो के लिए रण में कुछ २-३ (2-3) प्राथमिक विद्यालय है, जो एक मीठी की झुग्गी में लगते है। लेकिन उनका भविष्य पता नहीं कहा है। अगर कुछ किया न गया तो ये बच्चे भी अपने माँ-बाप की तरह नमक के मजदूर ही बनेंगे, क्योकि इन लोगो को और कोई काम आता भी तो नहीं है। 

[शाम का वक़्त है और सब साथ में बैठे है]
 

चेतना बेन : "शारदा बेन" मिली क्या ? [धीमी आवाज में बोली]
राजू भाई : नहीं, पर हम खोज रहे है। 
केतन : ये  "शारदा बेन खखाड़िया" मेरी दुल्हन है क्या ? हहहह [ठहाके लगते हुए]
चेतना बेन : तुम्हे जल्दी पता चल जाएगा। [गंभीर स्वर में] 
केतन : माँ इन नमक के मजदूरों या किसानो के बच्चे कैसे रहते है ?
चेतना बेन : बेटा.......  बीमार, कुपोषित और शिक्षा-विहीन। 
केतन : आप इन बच्चो के लिए कुछ नहीं करते ?
राजू भाई : हम इन बच्चो को स्वास्थ सुविधा , शिक्षा प्रायोजन और अडॉप्शन (दत्तक ग्रहण/गोद लेना) की सुविधा दिलवाते है। ताकि इन्हे एक अच्छा भविष्य मिल सके। 
चेतना बेन : आगे तुम्हे ही ये सब सम्हालना है चेतन। 
राजू भाई : ये तुम्हारी तो जमीन है [वाणी को विश्राम देते हुए ]
चेतना बेन : इनके माँ-बाप अपने बच्चो को हर हाल में इस हर-पल मरती जिंदगी से निकलना चाहते है। वह इसके लिए अपने जिगर के टुकड़े को किसी और को भी देने को तैयार हो जाते है। [ये बोलते -बोलते वो रोने लगी]

माँ को इतना भावुक मैंने बहुत कम देखा है। पापा ने उन्हें जैसे-तैसे शांत किया। शायद उन्हें मेरा ख्याल आ गया, मैं भी उनकी गोद ली हुई सन्तान हूँ। रात के वक़्त हम सब खाना खा कर बैठे थे इतने में कोई पापा से मिलने आया। पापा के माँ से बोला ........ 

राजू भाई : "शारदा बेन खखाड़िया" मिल गई। उनकी तब्बीयत बहुत ख़राब है, शायद अब वह कुछ दिन की मेहमान है। [गंभीर स्वर में]
चेतना बेन हम कल ही उनके पास जाऐंगे। अब ये बोझ मुझसे और नहीं झेला जाता।  [धीमी आवाज में बोली]
केतन : कौन है ये "शारदा बेन खखाड़िया", कौन लगती है वह हमारी और क्यों ये इतनी खास है।


[विराने में एक सन्नाटा छः गया ]

केतन : बोलो न माँ। 
चेतना बेन : वह तुम्हारी माँ है। बेटा हमने तुम्हे उनसे गोद लिया था पर वह नहीं  चाहती थी की तुम्हारे मन में कोई हीन भवाना आये या तुम हमे कभी भी पराया समझो इसलिए उन्होंने हमसे वचन लिया था की तुम्हे ये बताया जाए, की तुम्हारे माँ-पापा एक्सीडेंट में मर गए।  [रोते हुए बोली ]
राजू भाई : वह चाहती थी की तुम्हे इस बात का कभी पता न चले, पर हम तुम्हे एक बार उनसे मिलवाना चाहते थे। पर बेटा उन्हें  पता न लगने देना की तुम्हे सब पता है , उनकी तपस्या ख़राब मत करना।

ये सब सुनने के बाद मैं निःशब्द खड़ा हूँ , समझ ही नहीं आ रहा क्या बोलू। उस माँ  की मज़बूरी को समझू या इस माँ का प्यार। मैं अपने अनजान कल और आज के बिच खड़ा हूँ। मैंने माँ को गले से लगा लिया और चुप कराया। सारी रात छत की ओर देखता रहा। मन में इतने सवाल, इतनी बेचैनी है। क्या ये नमक एक मजदूर को इतना मजबूर कर देता है। 

सुबह होते ही हम गाड़ी से निकले, पुरे रस्ते किसी ने कोई बात नहीं की। इतनी चुप्पी की हवा की आवाज भी शोर लग रही है। जैसे ही वहाँ पहुंचे तो हमें एक झोपड़ी दिखी, एक आदमी वहाँ हमारा इंतजार कर रहा था। अंदर जा कर देख तो एक औरत खटिया पर लेटी हुई है। माँ उन्हें देखते ही पहचान गयी। उनकी तब्बियत काफी खराब है। आँखो से साफ़ दिखाई नहीं देता उनको, हाथ और पैर सर्ड गए है।

चेतना बेन : कैसी हो शारदा बेन। 

उनने हाथ हिला कर इशारा किया की ठीक हूँ। माँ-पापा उनकी खटिया के सामने खड़े हो गए और मुझे उनके पैर छूने को बोला। उनके पैरो को हाथ लगाया तो समझ आया की कैसे बेजान पत्थर सामान हो गए है नमक से। मैं  उनके पास बैठ गया। 

चेतना बेन : शारदा बेन अपने बेटे "केतन" को तुमसे मिलवाने लाई हूँ, उसे आशीर्वाद नहीं दोगी। तुम्हारे पास बैठा है। 

ये सुनते ही उनके चेहरे पर एक मुस्कान छा गयी और आँखो में आँसू आ गए। उनने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया। उनके हाथ का रूखापन और कपन मैं महसूस कर सकता हूँ। वह बेचारी मुझे देखना चाह रही है पर इन आधी अंधी आँखों से उन्हें कुछ साफ़ नज़र नहीं आ रहा। मैं थोड़ा उनके तरफ झुका तो उन्होंने अपना हाँथ मेरे सिर पर रख, मुझे आशीर्वाद दिया। शायद जितनी शरीर में जान है उसका पूरा जोर लगा कर बोली, "जीते रहो" मुझे देख तो पा नहीं रही है इसलिए अपने हाथो से मेरे चेहरे और फिर कंधे से होते हुए मेरे हाथों को टटोलने लगी। मानू मेरी आकृति अपने मान की आँखों से देख रही हो। हम सब चुप-चाप उन्हें देख रहे है। इस क्षण में एक अलग ही आत्मीयता और संतोष है। कुछ देर बाद वह आदमी जो झोपडी के बाहर हमारा इंतज़ार कर रहा था हम लोगो से बोला, "अब आप लोग आराम से जाइये इतनी देर इस गर्मी में रहना आपके लिए ठीक नहीं"। उनने (शारदा बेन) मेरे हाथ को टटोलते हुए मुझे जाने का इशारा किया। मैं उठा और बाहर जाने लगा। फिर अचानक ही मेरे मन में कुछ आया और मैं पलट कर बोला.........

केतन : माँ जी अपना ध्यान रखिएगा।
 
ये सुनते ही वह फिर मुस्कुराई, जैसे परम सुख मिल गया हो और हाँथ मेरे ओर हिलाया। वह मुस्कुराता चेहरा अपने मन में बासा कर मैं वहाँ से निकला। इस सफर ने मुझे एक नया इंसान बना दिया है और इन नमक के मजदुर और उनकी मजबूरी का हाल देखा दिया है।



कलम  से 
प्रियंका तिवारी 

Disclaimer :

This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events or any other literary material, called by any other name, is purely coincidental. The story is purely for entertainment purpose and the author has no intention to hurt the sentiments & emotions of any individual or public at large.

 

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