Friday, July 3, 2020

नमक के मजदुर और उनकी मजबूरी - कच्छ का रण


चेतना बेन : इस बार हम कच्छ के रण क्षेत्र, गुजरात जा रहे है और तुम भी चल रहे हो, अपना सामान गर्मी और मानसून के हिसाब से रख लो। 
राजू भाई : हम लोग वहाँ  के क्षेत्र में पाए जाने वाले पशु और  पक्षीयो पर अध्यन करेंगे। वह के नमक के मजदूरों के विकास कार्यो की रणनीति पर भी विचार विमर्श और उसकी रूप रेखा निर्धारित करेंगे।
केतन : मैं वहाँ क्या करूँगा माँ। 
राजू भाई : तुम्हारे लिए एक अच्छा एक्सपीरियंस (अनुभव) होगा। 
चेतना बेन : तुम्हे पता है वहाँ दुनिया का एकलौता  वाइल्ड अस्स सैंक्चुअरी (जंगली गधा अभ्यारण्य) है,  "इंडियन वाइल्ड अस्स वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी"। 
केतन : हाँ पापा गधो को देखन अच्छा  एक्सपीरियंस (अनुभव) होगा। हहहह [ठहाके लगते हुए]
राजू भाई : ओह्हो केतन, तुमको वह कितना देखने-समझने को मिलेगा। वहाँ का कल्चर (सभ्यता) , लोग, रेहन-सेहेन, वाइल्डलाइफ (वनप्रजाति), एट्सेटरा (आदि)। 
चेतना बेन : केतन थिस इस इम्पोर्टेन्ट फॉर योर स्टडीज, एंड इतस फाइनल (ये तुम्हारी पढ़ाई के लिए जरुरी है और ये सुनिश्चित हो गया है)
केतन : ओके माँ आप अब गुस्सा मत हो। मैं वहाँ के बारे में रिसर्च (अन्वेषण) कर लेता हूँ। 
राजू भाई : कुछ इंडियन क्लोथ्स (भारतीय वेशभूषाएं) रख लेना।  
केतन :आप लोग वह ले जा कर मेरी शादी तो नहीं करा रहे न। लुक आई हैव ऐ गर्लफ्रेंड (मेरे पास  प्रेमिका है) [व्यग के स्वर में ]
चेतना बेन : क्या वो बेचारी अभी भी है, मुझे लगा तुझ जैसे पागल से परेशान हो कर देश छोड़ कर भाग  गई। इसलिए तेरी दुल्हन एक प्यारी सी हिंदुस्तानी  संस्कारी और धीरज वाली लड़की ला रहे थे, क्योकि वो ही तुम जैसे पागल के साथ उम्रभर निभा सकती है। [व्यग के स्वर में ]
केतन : हाँ मम्मी जैसे आप पापा के साथ हो।  [व्यग के स्वर में ]
 राजू भाई : एएए .... केतन अपने बिच में मुझे क्यों घसीट रहे हो। बस बस और नहीं। 

जैसा की आप लोगो ने देख ही लिया होगा मेरे माँ-पापा कैसे मुझे कच्छ, गुजरात ले जाने पर उतारू है। ये तो साफ़-साफ़ जबरदस्ती है। पर क्या करू माँ-बाप है, मानना तो होगा। खेर मेरा नाम केतन मेहता है। मैं और मेरा परिवार लॉस एंजेल्स, कलिफोनिअ में रहता है। मैं "यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथर्न कलिफोनिअ" से जर्नलिज्म (पत्रकारिता) पढ़ रहा हूँ। मेरी माँ "चेतना बेन मेहता" और पापा "राजू भाई मेहता" पेशे से ज़ूलॉजिस्ट है और साथ ही साथ सोशल एक्टिविस्ट (सामाजिक कार्यकर्ता) है। वह यहाँ और इंडिया (भारत) के कई जगहों में अपना सोशल वेलफेयर (समाज कल्याण) का काम करते है। वह बचपन से मुझे अपने इंडियन टूर्स (भारतीय यात्राओं) में साथ ले जाते रहे है ताकि मैं अपने देश को जानू, उसकी सभ्यता को समझू। आज भी इंडिया (भारत) में इनका दिल बस्ता है और ये हर हिंदुस्तानी की हिर्दय संवेदना है। खेर एक बात तो है गुजरात की गर्मी सहना आसान नहीं होगा। मैं पहले भी गुजरात जा चूका हूँ और बीमार हो कर लौटा हूँ। क्यों की मैं बचपन से लॉस एंजेल्स में रहा हूँ। खेर मम्मी-पापा मुझे फिर भी वह ले जाएंगे ताकि मैं अपनी मिटी से जुड़ा राहू।

चेतना बेन : केतन तुम्हारी कच्छ के रण क्षेत्र की रिसर्च (अन्वेषण) कैसी चल रही। मुझे उम्मीद है तुम अपना डाक्यूमेंट्री प्रोजेक्ट वही पर बनाओगे। 
केतन : सच में माँ मुझे पता नहीं था वहाँ पर इतना सब देखने को है। आईएम रियली एक्ससिटेड नाउ (मैं अब वास्तव में उत्साहित हूँ ) मैं वहाँ  की बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी (जैविक-विविधता) देखना चाहता हूँ। मैं जानना चाहता हूँ की वहाँ  के अगरिया समुदाय के नमक के मजदूरों या किसान  कैसे रहते है इतनी परेशानियों के बिच और इतने कम पैसे में। 
चेतना बेन : तुम्हे जानना चाहिए, जरूर जानना चाहिए [मायूसीभरे स्वर में वह ये बोलते हुए चली जाती है ]। 
  
२० (२०) नवम्बर, आखिर वो दिन आ गया। हम ध्रांगधरा जो लगभग ४५ (45) किमी की दुरी पर "इंडियन वाइल्ड अस्स वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी" पहुँच गए है। यहाँ का तापमान लगभग ३०-३५ (30-35) डिग्री है जो की अम्म तौर के तापमान से कम है। हमने पास में ही एक होटल लिया, वह से गाड़ी से कच्छ के रण के लिए निकले। एक बड़े ही प्यारे से मड-हाउस (मिट्टी का घर) में हमने अपने आने वाले एक महीने का बसेरा बसाया जो सैंक्चुअरी से कुछ किमी दुरी पर है। सैंक्चुअरी का क्षेत्रफल ४९५४ (4954) वर्ग किमी है और यहाँ आते ही पापा और मम्मी अपने कामो में लग गए। माँ-पापा ने अपना प्लान (योजना) तो घर पर ही बना लिया था और आते ही उसमे लग गए। हम सैंक्चुअरी के क्षेत्र में घूमते हुए जानवरो और पक्षियों को देखते और साथ में माँ-पापा अपना अध्यन से जुड़े काम करते रहते है। पर न जाने वह इस बार कुछ अलग ही खोज रहे है समझ ही नहीं आ रहा, जैसे किसी अपने की तलाश में है। मैं कोई मनोविज्ञानी नहीं, पर उनकी बेचैनी साफ़ देख और समझ सकता हूँ, शायद वह मुझे बताना नहीं चाहते।

रण  का इकोसिस्टम (पारिस्थितिकी तंत्र) बड़ा उन्नत है। माँ-पापा हर २-३ दिन में यहाँ के अगरिया समुदाय के नमक के मजदूरों से मिलते है जिनके विकास के लिए वह कई सालो से काम कर रहे है। उनके स्वयं सहायता समूह के कामो का जाएजा लेना, उनको जागरूक करना, महिलाओ को काम सिखावना, स्वस्थ सम्बन्धी सेवाएं दिलवाना और उनको कैसे सहयता राशि मुहैया कराए, आदि विषियो पर बात-चित जैसे काम में माँ-पापा लगे रहते। इन नमक के मजदूरों और किसानो की हालत बड़ी दयनीय है। माँ-पापा के सामाजिक कार्य देख मुझे बहुत सौभाग्यशाली और गर्वान्गिता महसूस होता है की मैं उनका बेटा हूँ। इसी बिच हम अस्स-पास के इलाक़े में भी घूमने जाते रहते है। ये अगरिया समुदाय के नमक के मजदूर और किसान हमें अपने घर भी बुलाते रहते है और हम जाते भी है। कई लोग माँ-पापा को बड़े अच्छे से जानते है। पर अक्सर माँ-पापा मुझसे  चुप उनसे बात करते और एक नाम की खोज में लगे रहते है, "शारदा बेन खखाड़िया"

इस रण की संस्कृति भी बड़े लुभावानि और विविद है। हम जब रण उत्सव में गए तो मैं तो हैरान ही रह गया। मैं तो समझ ही नहीं पा रहा हूँ की इस डाक्यूमेंट्री मे क्या-क्या डालू, यहाँ का लोक गीत-संगीत और नित्य जैसे गजियो या रंगीन विषभूषा या लोक कला। और खाने की तो बात मत पूछो, कढ़ी-रोटला, चक्रदा पकवान और पता नहीं क्या-क्या। मुझे हर एक जाते पल के साथ इस मीठी से प्रेम होता जा रहा है। लेकिन न जाने इस वयस्तत में भी माँ-पापा किसे खोजने में लगे है। 

सैंक्चुअरी और रण के क्षेत्र में हमने कितने पशु, पक्षी और वनस्पति देखे, मुझे तो सब के नाम भी याद नहीं हुए। वहाँ इतने सरे है जैसे जंगली-गधो, नील-गाय, लकड़बग्धा आदि। "इंडियन वाइल्ड अस्स वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी" के एशियाई जंगली गधे, जिन्हे यहाँ के लोग "खुर" बोलते है की चल किसी मदमस्त हाथी से कम नहीं। ये गधे एक विलुप्त हो रही प्रजाति के है इसलिए इन्हे इतना संरक्षण हासिल है। आपको बताओ तो यहाँ २०० (२00) तरह के पक्षी देखे जा सकते है और उसमे से कई प्रवासी पक्षी है जैसे यूरोपीय रोलर (नीलकंठ), लैसर फ्लोरिकन (खरमोर) आदि। जितने सूंदर और विशाल फ्लेमिंगो (मराल) मैंने यहाँ देखे शायद ही कही देखे होंगे। इस बंजर वीराने में एक अलग ही सुंदरता है और यही मिलते है नमक के खेत।

ये वही  नमक के खेत है जहाँ पर अगरिया समुदाय के नमक के मजदूरों या किसान ५० (50) डिग्री की कड़ी धुप में ८ (8) महीने कड़ी मेहनत करते है नमक बनने के लिए। इस नमक की खेती में इनका पूरा शरीर और उम्र गाल जाती है, एक औसतन नमक के मजदूरों या किसान की उम्र केवल ५०-५५ (50-55) वर्ष ही होती है। इनके पुरे शरीर पर नमक का घातक आसार होता है, ये वक़्त के साथ उम्र से पहले अंधे होने लगते है , इनके पुरे शरीर की त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है। इनको कई बीमारिया भी हो जाती है, खास तौर पर त्वचा सम्बन्धी। यहाँ तक की इनके हाथ और पैर नमक के खेतो में काम करते-करते सार्ड जाते है।  इस पेशे से जुड़ी हुई सबसे भयावल सच्चाई इनके अंतिम संस्कार के वक़्त दिखती है। इनके पैर देह-संस्कार के वक़्त नहीं जलते क्यों की वह सर्ड कर सख्त हो जाते है, एक पत्थर के सामान। नमक के मजदूरों के लिए यहाँ एक कहावत है की, "इनके शरीर में खून नहीं नमक बेहता है"। और इतनी मेहनत का इन्हे क्या मिलता है, जरा सोचिये। कोई हज़ारो-लाखो रुपये नहीं, बल्कि ६०-७० (60-70) रुपये पर १००० (1000) किलो। बिचौलिये, व्यापारी और बड़ी कम्पनिया सारा मुनाफा कमाती है। अक्सर ये  नमक के मजदूर और किसान घाटे में ही अपना नमक बेचते है क्योकि ज्यादातर पैसा तो इनके जनरेटर के तेल में ही चला जाता है। ये तपती धुप में अपने हाथो से कितने कुँए खोदते है तब जा कर कही किसी एक कुँए में इन्हे नमक का पानी मिलता है। उस पानी को ८ (8) महीने तक खरोंचते है तब जा कर नमक बनता है। यहाँ इनके बच्चो के लिए रण में कुछ २-३ (2-3) प्राथमिक विद्यालय है, जो एक मीठी की झुग्गी में लगते है। लेकिन उनका भविष्य पता नहीं कहा है। अगर कुछ किया न गया तो ये बच्चे भी अपने माँ-बाप की तरह नमक के मजदूर ही बनेंगे, क्योकि इन लोगो को और कोई काम आता भी तो नहीं है। 

[शाम का वक़्त है और सब साथ में बैठे है]
 

चेतना बेन : "शारदा बेन" मिली क्या ? [धीमी आवाज में बोली]
राजू भाई : नहीं, पर हम खोज रहे है। 
केतन : ये  "शारदा बेन खखाड़िया" मेरी दुल्हन है क्या ? हहहह [ठहाके लगते हुए]
चेतना बेन : तुम्हे जल्दी पता चल जाएगा। [गंभीर स्वर में] 
केतन : माँ इन नमक के मजदूरों या किसानो के बच्चे कैसे रहते है ?
चेतना बेन : बेटा.......  बीमार, कुपोषित और शिक्षा-विहीन। 
केतन : आप इन बच्चो के लिए कुछ नहीं करते ?
राजू भाई : हम इन बच्चो को स्वास्थ सुविधा , शिक्षा प्रायोजन और अडॉप्शन (दत्तक ग्रहण/गोद लेना) की सुविधा दिलवाते है। ताकि इन्हे एक अच्छा भविष्य मिल सके। 
चेतना बेन : आगे तुम्हे ही ये सब सम्हालना है चेतन। 
राजू भाई : ये तुम्हारी तो जमीन है [वाणी को विश्राम देते हुए ]
चेतना बेन : इनके माँ-बाप अपने बच्चो को हर हाल में इस हर-पल मरती जिंदगी से निकलना चाहते है। वह इसके लिए अपने जिगर के टुकड़े को किसी और को भी देने को तैयार हो जाते है। [ये बोलते -बोलते वो रोने लगी]

माँ को इतना भावुक मैंने बहुत कम देखा है। पापा ने उन्हें जैसे-तैसे शांत किया। शायद उन्हें मेरा ख्याल आ गया, मैं भी उनकी गोद ली हुई सन्तान हूँ। रात के वक़्त हम सब खाना खा कर बैठे थे इतने में कोई पापा से मिलने आया। पापा के माँ से बोला ........ 

राजू भाई : "शारदा बेन खखाड़िया" मिल गई। उनकी तब्बीयत बहुत ख़राब है, शायद अब वह कुछ दिन की मेहमान है। [गंभीर स्वर में]
चेतना बेन हम कल ही उनके पास जाऐंगे। अब ये बोझ मुझसे और नहीं झेला जाता।  [धीमी आवाज में बोली]
केतन : कौन है ये "शारदा बेन खखाड़िया", कौन लगती है वह हमारी और क्यों ये इतनी खास है।


[विराने में एक सन्नाटा छः गया ]

केतन : बोलो न माँ। 
चेतना बेन : वह तुम्हारी माँ है। बेटा हमने तुम्हे उनसे गोद लिया था पर वह नहीं  चाहती थी की तुम्हारे मन में कोई हीन भवाना आये या तुम हमे कभी भी पराया समझो इसलिए उन्होंने हमसे वचन लिया था की तुम्हे ये बताया जाए, की तुम्हारे माँ-पापा एक्सीडेंट में मर गए।  [रोते हुए बोली ]
राजू भाई : वह चाहती थी की तुम्हे इस बात का कभी पता न चले, पर हम तुम्हे एक बार उनसे मिलवाना चाहते थे। पर बेटा उन्हें  पता न लगने देना की तुम्हे सब पता है , उनकी तपस्या ख़राब मत करना।

ये सब सुनने के बाद मैं निःशब्द खड़ा हूँ , समझ ही नहीं आ रहा क्या बोलू। उस माँ  की मज़बूरी को समझू या इस माँ का प्यार। मैं अपने अनजान कल और आज के बिच खड़ा हूँ। मैंने माँ को गले से लगा लिया और चुप कराया। सारी रात छत की ओर देखता रहा। मन में इतने सवाल, इतनी बेचैनी है। क्या ये नमक एक मजदूर को इतना मजबूर कर देता है। 

सुबह होते ही हम गाड़ी से निकले, पुरे रस्ते किसी ने कोई बात नहीं की। इतनी चुप्पी की हवा की आवाज भी शोर लग रही है। जैसे ही वहाँ पहुंचे तो हमें एक झोपड़ी दिखी, एक आदमी वहाँ हमारा इंतजार कर रहा था। अंदर जा कर देख तो एक औरत खटिया पर लेटी हुई है। माँ उन्हें देखते ही पहचान गयी। उनकी तब्बियत काफी खराब है। आँखो से साफ़ दिखाई नहीं देता उनको, हाथ और पैर सर्ड गए है।

चेतना बेन : कैसी हो शारदा बेन। 

उनने हाथ हिला कर इशारा किया की ठीक हूँ। माँ-पापा उनकी खटिया के सामने खड़े हो गए और मुझे उनके पैर छूने को बोला। उनके पैरो को हाथ लगाया तो समझ आया की कैसे बेजान पत्थर सामान हो गए है नमक से। मैं  उनके पास बैठ गया। 

चेतना बेन : शारदा बेन अपने बेटे "केतन" को तुमसे मिलवाने लाई हूँ, उसे आशीर्वाद नहीं दोगी। तुम्हारे पास बैठा है। 

ये सुनते ही उनके चेहरे पर एक मुस्कान छा गयी और आँखो में आँसू आ गए। उनने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया। उनके हाथ का रूखापन और कपन मैं महसूस कर सकता हूँ। वह बेचारी मुझे देखना चाह रही है पर इन आधी अंधी आँखों से उन्हें कुछ साफ़ नज़र नहीं आ रहा। मैं थोड़ा उनके तरफ झुका तो उन्होंने अपना हाँथ मेरे सिर पर रख, मुझे आशीर्वाद दिया। शायद जितनी शरीर में जान है उसका पूरा जोर लगा कर बोली, "जीते रहो" मुझे देख तो पा नहीं रही है इसलिए अपने हाथो से मेरे चेहरे और फिर कंधे से होते हुए मेरे हाथों को टटोलने लगी। मानू मेरी आकृति अपने मान की आँखों से देख रही हो। हम सब चुप-चाप उन्हें देख रहे है। इस क्षण में एक अलग ही आत्मीयता और संतोष है। कुछ देर बाद वह आदमी जो झोपडी के बाहर हमारा इंतज़ार कर रहा था हम लोगो से बोला, "अब आप लोग आराम से जाइये इतनी देर इस गर्मी में रहना आपके लिए ठीक नहीं"। उनने (शारदा बेन) मेरे हाथ को टटोलते हुए मुझे जाने का इशारा किया। मैं उठा और बाहर जाने लगा। फिर अचानक ही मेरे मन में कुछ आया और मैं पलट कर बोला.........

केतन : माँ जी अपना ध्यान रखिएगा।
 
ये सुनते ही वह फिर मुस्कुराई, जैसे परम सुख मिल गया हो और हाँथ मेरे ओर हिलाया। वह मुस्कुराता चेहरा अपने मन में बासा कर मैं वहाँ से निकला। इस सफर ने मुझे एक नया इंसान बना दिया है और इन नमक के मजदुर और उनकी मजबूरी का हाल देखा दिया है।



कलम  से 
प्रियंका तिवारी 

Disclaimer :

This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events or any other literary material, called by any other name, is purely coincidental. The story is purely for entertainment purpose and the author has no intention to hurt the sentiments & emotions of any individual or public at large.

 

मेरी और भी कहानिया पढ़ने के लिए निचे दिये लिंक पर क्लिक कर :





Saturday, May 16, 2020

बचपन की अनजान सीख


"माँ अपने मुझे बोलना कैसे सिखाया", १0 (दस) साल के माधव का सवाल सुन कर माँ हस्स पड़ी। माँ को हस्ता देख माधव का कौतूहल और बढ़ गया। "बोलो न माँ, मुझे बोलना कैसे सिखाया"। माँ हस्ते होए बोली, "अरे बड़ो को बोलते-सुनते हुए  देख कर खुद सीख गए"। माँ का जवाब उस उम्र में ठोस नहीं लगा था। मन ही मन सोच रहा था, "फिर गणित क्यों नहीं खुद-बा-खुद समझ आती"। और नहीं तो क्या, माँ बाबा की गणित बहुत अच्छी थी पर मेरे दिमाग में तो ढेला नहीं घुसता था। खेर वक़्त के साथ ये सवाल भी सालो के तरह हवा में बेह गया। अब दुनिया-दरी की चक्की चला रहे थे, वही रोज़ का काम, दफ्तर, घरवालो और मेरे यश। यश मेरा प्यारा भतीजा है। बचपन से वह मेरा लाडला है, उसे लोग अपने पापा के नाम से कम मेरे नाम से ज्यादा जानते है। उसकी घर में इधर-उधर चेहेल चलती रहती है बच्चा तो है, वो नहीं करेगा तो कौन करेगा। यश हमेशा मेरे साथ रहता है। जब भी मैं घर पर रहता, यश मेरे साथ ही होता। मेरे साथ ही उठता-बैठता, खता-पीता, खेलता-कूदता, हम दोनो तो एक दूसरे के साये जैसे थे। भाभी हमेशा कहती रहती, "देवर जी यश आपसे सब सीख रहा है"। पर कौन इन बातो पर  गौर करता है।

                     ये प्राइवेट नौकरी, उफ्फ काम में ही सारा दिन निकल जाता है। और-तो-और मालिक खुद को भगवान से कम नहीं समझता। सारा हफ्ता एड़ी घिसने में निकल जाती है और रविवार कपडे धोने और प्रेस करने में। भईया का बॉस तो बहुत ही चांडाल है, इतना काम करता है। भईया काफी तनाव में रहते है, ऑफिस के काम से  ज्यादातर शहर से बहार ही रहते है और भाभी घर सम्हालती है। इसी कारण भईया-भाभी में काफी कहा-सुन्नी भी होने लगी है। पर फिर दोनों सब बना भी लेते है। खेर मैं तो यश के लिए खुश था, अब स्कूल जो जाने लगा है। बड़ी बड़ी बाते भी करने लगा है, एक दिन कहता है "चाचा जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तो पापा को ऑफिस नहीं जाने दूंगा उन्हें सब सुख घर में ला दूँगा"। इतनी प्यारी बाते मनमोह लेती है, मेरे लिए तो खिलौना है यश, सब टेंशन-तनाव भूल जाता हूँ उसके आगे। अरे प्राइवेट नौकरी मेरी भी है तनाव मुझे भी है। लेकिन मैं तो बढ़िया घूमने निकल जाता हो जब मन होता है और देर रात में वापस आता हू, भइया-भाभी गुस्सा करते है तो उल्टा जवाब दे देता हूँ जब ज्यादा हो जाता है। अरे क्या करू सहनशक्ति जो साथ छोड़ देती है।

नजाने क्यों आज कल यश ठीक से बात नहीं करता। बड़ा उत्खाडा-उत्खाडा रहता है। भाभी से भी बत्तमीजि करता है पर मैं समझा देता हूँ उनको "अरे बच्चा है गलती कर देता है जाने दो न भाभी"। पर अब यश कुछ ज्यादा ही बत्तमीजि और जिद्द करने लगा है, किसी को कुछ भी बोलता है। समझ नहीं आ रहा है यश को होआ क्या है। फिर एक दिन चाची जी घर आयी, भाभी ने पूरी समस्या उन्हें बताई। चाची जी जोर से ठहाका मार कर हांसी, "बिल्कुल अपने बाप पर गया है। बहुँ सुन्न ये न उसका शरीर कद छोड़ रहा न है इसलिए बच्चा चिरड-चिढ़ाता है, कुछ दिन की बात है फिर सब ठीक हो जाएगा। इसका बाप भी ऐसा ही था"। चाची जी की बात सुन्न कर भाभी को सुकून आया। महीनो हो गए अब यश की जिद्द और बत्तमीजि हद्द से ज्यादा बड गयी है हमने फैसला लिया की उसके स्कूल जाकर टीचर से बात करेंगे। हो सकता है गलत संगत में हो बच्चा हमारा। हमने टीचर से बात की, उन्होंने उसकी सीट बदल दी और बदमाश बच्चो से दूर कर दिया। टीचर ने प्यार से यश को समझाया भी और मानो पल भर में सब ठीक हो गया।

आज समाचार में देखा की किसी देश से अमेरिका की सेना ने कुछ छोटे-छोटे बच्चो को पकड़ा है। इन बच्चो को मानव बॉम्ब के तौर पर ईस्तमाल करना था। इन छोटे-छोटे बच्चो को तो ये भी नहीं पता था की वो क्या करने वाले थे। मन में ख्याल आया की कैसे सीखाते है ये सब बच्चो को, फिर यश का ख्याल आया। यश अब ६ (छे) साल का हो गया है और साइकिल चलाना सीख गया है। वो इधर उधर साइकिल से घूमता रहता है अक्सर। अब तो पूरी बच्चा पार्टी भी है उसके साथ।आज शाम मैं जब ८ (आठ) बजे घर पहुंचा तो मौहाल बड़ा चिंताजनक था, मुझे समझ ही नहीं आया की क्या होआ। मैंने भाभी से पूछा "क्या होआ भाभी"। बस मेरे सावल पूछने की ही देर थी और भाभी का बान्ध फट पड़ा। "माधव यश शाम को साइकिल चलने गया था अभी तक घर नहीं आया", ये बोल कर भाभी फुट-फुट कर रोने लगी। हमारे शहर में इस वक़्त बच्चो का अपहरण करने वाले गैंग सक्रिय थे। यश को खोजने में सब लग गए। रात ९ (नौ) बजे यश एक पडोसी को मिला और वह उससे घर ले आया। जैसे तैसे घर में सब की सासो में सास आयी। अब यश का साइकिल चलना भी बंद करवा दिया था और उसे घर के पास खेलने को समझा दिया था। यश प्यार से हर बात मान है।

हमारे देश में सड़क पहले बनती है और फिर ये फ़ोन कंपनी वालो को याद आया है की तार डालना तो भूल ही गए। और फिर अच्छी खासी नई सड़क को खोद कर बर्बाद कर देते है। साथ ही साथ बोनस में पानी की पाइप-लाइन भी तोड़ कर चले जाते है। हमारी कॉलोनी में ऐसा २ (दो) बार हो चूका था। जब सुबह लोगो के घरो में पानी नहीं आया तब इस बात का पता चला। इस बार हम सब ने तैय कर लिया था की ऐसा होआ तो इठः से इठः बजा देंगे। क्या-क्या करेंगे यही हम कॉलोनी वाले आपास में बात कर रहे थे, यश भी साथ था। बड़ी गरमा-गर्मी वाली चर्चा थी, सब आक्रोश से भरे हुए थे। अचानक अगली सुबह यश दौड़ते होए मेरे पास आया, उसके एक हाथ में डंडा और दूसरे हाथ में चाक़ू था। वह चिलाते होए बोला  "चाचा वह लोग आ गए, चलो हाथ-पाओ तोड़ देंगे, चाक़ू मार देंगे"। ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए, ये बच्चा क्या बोल रहा है इसे पता भी है। मैंने बाहर जा कर देखा तो फ़ोन कंपनी वाले सड़क खोदेने आये थे। सारा मामला समझ आ गया मुझे और मन आत्मगिलानी से भर गया। ये उसे मैंने अनजाने में सिखाया था, वह मासूम तो जनता भी नहीं की अगर किसी को चाकू मार दिया तो क्या होगा। ये सब जो भी यश कर रहा था वो उसे हम सब ही तो अनजाने में सिखा रहे थे। वो बत्तमीजि-उत्खाडापन भइया-भाभी के बीच की कहा-सुन्नी और झगाड़े थे। वो जिद्द भइया और मेरा तनाव था, और वो रात में उसका साइकिल से दूर घूमना मेरी मनमौजी थी।  यश ने कुछ नहीं किया था हमने उसे सिखाया था। अब मुझे उन बच्चो की भी मानुइस्थिति समझ आयी जिनके बारे में न्यूज़ में सुन्ना था। इसलिए बड़े बोलते है की बच्चो के सामने अच्छे से बर्ताव करे, अच्छा बोले।

                                एक पाल में सब समझ आ गया, ये तो बचपन की अनजान सीख है। जो बच्चे देखते सुनते है घर में वही तो वह बनते है। हमें यश की टीचर से नहीं खुद से बात करनी थी। मुझे, भईया और भाभी को यश के आसपास एक अच्छा मौहाल बनना था, ना की उसे उसके दोस्तों से दूर करना था। मुझे यश के सामने एक अच्छा उद्धरण बनना चाहिए था, ना की उसकी साइकिल की सैर बंद करनी चाहिए थी।आज माँ का वो जवाब जो १0 ( दस) साल के माधव को ठोस नहीं लगा था, बिलकुल इस्पष्ट हो गया था। अनजाने में हम अपने घर के बच्चे को कभी कभी गलत बाते और बर्ताव सिखा देते है और दोष उन पर या स्कूल वालो पर दाल देते है। मेरा तो पता नहीं पर आज यश ने मुझे जरूर कुछ अच्छा सीखा दिया था।

कलम से...... 

प्रियंका तिवारी  


 

Disclaimer :

This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events or any other literary material, called by any other name, is purely coincidental. The story is purely for entertainment purpose and the author has no intention to hurt the sentiments & emotions of any individual or public at large.

मेरी और भी कहानिया पढ़ने के लिए निचे दिये लिंक पर क्लिक कर :

Taxolawgy With Priyanka Tiwari: नमक के मजदुर और उनकी मजबूरी - कच्छ का रण

Taxolawgy With Priyanka Tiwari: बाबु जी की आखिर सहेली

                                                 

Saturday, April 4, 2020

Registration under GST


Under this blog today we are going to understand the provisions of GST Registration in details. The whole cycle of GST (Good and Service Tax) implementation and compliance begins with requirement of GST Registration. A person can take voluntary registration for GST, But if the turnover exceeds the below define limit the person becomes liable to get GST Registration.


A.   Persons Liable for Registration (Section 22)

Sec. 22 of the CGST (Central Goods and Service Tax) ACT states the limit for GST registration. Once you exceed the limit you are liable to get GST registration. As per the decisions of the 32th GST Council Meeting, the limit for GST registration for both service provider and traders has been aroused from the previous limit of Rupees Twenty Lakh ( 20,00,000) for normal category states & Rupees Ten Lakh ( ₹ 10,00,000) for special category states w.e.f 1st April 2019. Now a person has to take GST Registration if his turnover exceed the limits as below :-

For Trader/Manufacturer Provider :
-       Normal Category states
Turnover Exceed 40 Lakhs
-       Special Category states :
1)    Arunachal Pradesh
2)    Assam
3)    Jammu & Kashmir
4)    Manipur
5)    Meghalaya
6)    Mizoram
7)    Nagaland
8)    Sikkim
9)    Tripura
10) Himachal Pradesh
11) Uttarakhand
Turnover Exceed 20 Lakhs
For service Provider :
-       All category states
Turnover/Gross Receipts Exceed 20 Lakhs

B.   Compulsory registration in certain Cases (Section 24)

Sec 24 of the CGST (Central Goods and Service Tax) ACT, The following persons need to take registration under GST compulsorily if they are making taxable of goods and services :

1.    Doing inter-state sales.

2.    Casual taxable person.

3.    Required to pay Tax under Reverse charge mechanism (RCM).

4.    Required to pay tax U/S. 9 (5) of the act i.e. E-Commerce Operates.

5.  Every E-Commerce Operates who all require to deduct TDS (Tax deducted at source).

6.    Suppliers supplying through E-Commerce Operates who require  to deduct TDS.

7.    Non Resident making taxable supply.

8.    Required to deduct TDS.

9.    Supplying on behalf of other taxable person like agent or other.

10.  ISD (Input Service Distributor).

11.  Non registered person providing online information & database related service to person in India.

12.  Such other person as notified by the council from time to time.

C.   Persons Not Liable for Registration (Section 23)

Sec. 23 of the CGST (Central Goods and Service Tax) ACT states the persons who are not required to get GST registration. They are :-

1.    Persons providing non taxable and exempt goods and services.

2.    Agriculturist* supplying there non-processed produce.

3.    Such other person as notified by the council from time to time.

D.   Composite Scheme (Section 10)

Sec. 10 of the CGST (Central Goods and Service Tax) ACT states everything about Composition scheme. There are also composition rules and notification which amended the eligibility for registration for composition scheme. One person has to fulfill the eligibilities to get registration under GST. A person whose aggregate turnover in the preceding financial year (F.Y.) did not exceed ₹ 1,50,00,000 (Rupees One Crore Fifty Lakhs) may opt for composition scheme. The limit for the specified states is ₹ 75,00,000 (Rupees Seventy Fifty Lakhs). I have written a separate blog with complete details about composition scheme, go and check for further information https://taxolawgywithpriyankatiwari.blogspot.com/2020/02/composition-scheme-blessing-for-small.html

Time Limit for Registration (Section 25)



Sec. 25 of the CGST (Central Goods and Service Tax) ACT states time limit for applying for GST registration. The below table explains it in simplified manner.

Category
Time Limit
Persons falling under Section 22 & 24
30 days from the date of exceeding the limit
Casual Taxable Person** or Taxable Non resident
5 days prior to the commencement of business

* Agriculturist (Section 2 Clause 7)
Agriculturist means an individual or a Hindu Undivided Family who undertakes cultivation of Land –
(a)  By own labour, or
(b)  By the labour of Family,or
(c)  By servants on wages payable in cash or kind or by hired labour under personal supervision or personal supervision of any member of family;

Here point to be noted is that land can be of any other person or in the name of any other person then the agriculturist. 

** Casual Taxable Person (Section 2 Clause 20)
Casual taxable person means a person who occasionally undertakes transactions involving supply of goods or service or both in the course or furtherance of business, whether as principal, agent or in any other capacity, in a state or union territory where he has no fixed place of business.

Mode of registration

The easiest mode of registration is online mode, through the website https://www.gst.gov.in . But one can also go to any “GST Suvidha Kendra” run by government with their documents and get the registration done.

Document and other requirements for registration


1. PAN (Permanent Account Number)

2. One Mobile No. and Email ID

3. Aadhar

4. One Bank Account to link

5. Photo of Stakeholder (Promoter / Partner) : Photo of the Promoter/ Partner

6. Photo of the Authorised Signatory : Photo

7. Proof of Appointment of Authorised Signatory (Any One) : Letter of Authorisation, Copy of Resolution passed by BOD/ Managing Committee and Acceptance letter

8. Proof of Principal Place of business (Any One) : Electricity Bill, Legal ownership document, Municipal Khata Copy and Property Tax Receipt

This is a complete blog over GST Registration and requirements. Tried to provide all details in the précised manner. I hope this blog has provided useful detailed to you. If you find this blog useful please do share with your friends and family. Feel free to leave your views, comments and queries in the comment section below.

Disclaimer :

The above blog is purely for educational and  guidance purpose. It's just the reflection of the author's personal experience and judgment. The author has just provided the general information & understanding and its not at all an alternative of any legal advice or practitioner. It has no connection with the websites mentioned in its contents. The content stated in the blog should be used by the reader at his own discretion and sole responsibility. The content of the blog can be only used for any other document, write-up, article, blog and any written or printed material whether on paper or digitally in any form, with the prior permission of the author.

सफर और मंजिल

सफर और मंजिल ये मेरी पहली सोलो ट्रिप (अकेल सफर) होने वाली है। इतनी मुश्किल से इस सफर के लिए सब प्लान (प्रबन्ध) किया  है और निकलने को उत्सुक ...